संदेश
कोशिश तो कर - कविता - रवींद्र सिंह राजपूत
क्यों रुके हैं ये क़दम तेरे? तू चलने की कोशिश तो कर, माना की जो न मिल सका उसके लिए अफ़सोस है परन्तु तू आगे बढ़ने की कोशिश तो कर। मंज़िल ते…
पुरुष - कविता - वंदना गरूड़
पुरुष आधार है, पुरुष संबल हैं स्त्री का, पुरुष भविष्य है आने वाले कल का, बचपन से होती है, पुरुष से कई उम्मीदें, बुढ़ापे तक दे जाता है …
तुम्हारे साथ - कविता - प्रवीन 'पथिक'
तुम्हारे साथ, चलना चाहता हूॅं, कुछ क़दम। ठहरना चाहता हूॅं, कुछ क्षण। बताना चाहता हूॅं, अपनी जिजीविषा। डूबना चाहता हूॅं, तुम्हारे रंग मे…
महारथी कर्ण - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
श्रापों और छलों के मध्य, फँसा था वह वीर महान, सूर्यपुत्र कर्ण की गाथा, हर युग में अद्वितीय प्रमाण। धरती का पुत्र, राधा का लाड़ला, धर्म…
माँ गंगे - कविता - आनंद त्रिपाठी 'आतुर'
दुनिया में जब व्यभिचार है तो मैं भला जाऊँ कहाँ, जो तन व मन के कष्ट हैं तेरे सिवा बतलाऊँ कहाँ। तू मातु गंगे पूर्ण है जड़ चेतनों को तारत…
बाग़ में कोई कली चटके मगर तुमको न भाए - नज़्म - रोहित सैनी
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन तक़ती : 2122 2122 2122 2122 बाग़ में कोई कली चटके मगर तुमको न भाए, रंग सब बेरंग ठहरे,…
चलो पथिक - कविता - मयंक द्विवेदी
सुगम पथ की राहों पर चलना भी क्या चलना है राह सीधी तो सबने देखी जाँची परखी अपनी मानी कहो दुर्गम अनजानी राहों के मंजर का क्या कहना है! …
मेरी नानी - कविता - उमेश यादव
कमर झुकी है हाथ में डंडा, बड़ी सुहानी लगती हैं। माँ की मम्मी, बड़ी सुंदरी, मेरी नानी लगती हैं॥ बचपन की कुछ मीठी यादें, अब भी मन हर्षाते …
नमक-खोर - कविता - विक्रांत कुमार
उफ्फ़ ये नमक देह जब खटता है पसीना नमकीन होता है और दिमाग़ मधुमेह इस बार जब देह खटेगा तब दिमाग़ ना नमकीन होगा ना मीठा राम कसम सब कुछ फीका…
साँच कहूँ सुन साथ चले सब - सवैया छंद - महेश कुमार हरियाणवी
साँच कहूँ सुन साथ चले सब, बात यही सब को बतलाना। जीवन में मतभेद नहीं रख, द्वेष कहाँ तक है टिकपाना। बादल भी कितना ठहरे नभ, आख़िर तो ध…
मैया मैं ठहरा संन्यासी - कविता - भगत
मैया मैं ठहरा संन्यासी भोग विलासी सब संसारी मुझको आत्मसुधा ही प्यारी राम रसायन की हे मैया आत्मा मेरी प्यासी मैया मैं ठहरा संन्यासी इस…
अक्षर अक्षर कहे कहानी - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
अक्षर अक्षर कहे कहानी कही पे सुखा कही पे पानी सहम गए क्यूँ एक छोटी सी ठोकर खाकर ठहर गए चट्टान से थे जो फ़ौलादी पल भर में क्यूँ बिखर गए…
चला बटोही - कविता - मुकेश 'आज़ाद'
दिन निकला और चला बटोही पाने अपनी राह को धूप तेज़ पर बढ़ा बटोही रखने पाँव, छाँव को वो रुका नहीं, वो थका नहीं वो झुका नहीं, वो मिटा नह…
उड़ो तुम लड़कियों - कविता - सुनीता प्रशांत
उड़ो तुम लड़कियों छू लो आसमान कर लो मुठ्ठी में सारा जहान तोड़ दो दीवारे जो रोकती हैं तुम्हे छोड़ दो वो बंदिशे जो बाँधती हैं तुम्हे रूढ…
मेरे पिता - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
अपने पिता के बीते जीवन को जितना जानने की कोशिश करता हूँ अक्सर हारा हुआ, और हटाश महसूस करता हूँ जबकि दुःख से मुठभेड़ करते कभी उदास नहीं …
अनगढ़ कविताएँ - कविता - संजय राजभर 'समित'
जीवन भाग-दौड़ में है अंदर कविताएँ किसी तरह लिख भी दिया तो व्याकरण का जाँच रह जाता है बाक़ी आज-कल सुबह-शाम करते हुए हृदय में दूसरी कविता…
परिभाषा नारी कठिन - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
परिभाषा नारी कठिन, महिमा कठिन बखान। हे अम्बा धरणी जयतु, कठिन मातु सम्मान॥ लज्जा श्रद्धा मातृका, ममतांचल संसार। क्षमा दया करुणा हृदय…
मॉं की दुआ - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया
उस आँगन में रहे ना कभी, सुख-समृद्धि का अभाव। फलीभूत रहता है जबतक, माँ की दुआओं का प्रभाव। जन्मदात्री की आज्ञा का, जिस घर में हो अनुपाल…
मेरी माँ - कविता - आर॰ सी॰ यादव
अमिट प्रेम की पीयूष निर्झर, क्षमा दया की सरिता हो। गीत ग़ज़ल चौपाई तुम हो, मेरे मन की कविता हो॥ ऋद्धि सिद्धि तुम आदिशक्ति हो, ज्ञानदाय…
माँ - नवगीत - सुशील शर्मा
तेज़ धूप में बरगद जैसी छाया माँ। झुर्री वाली प्यारी प्यारी काया माँ। मेरे मानस की लहरी में, सदा सुहागन मेरी माँ। मेरी जीवन शैली में, सु…
स्नेह भरे आँचल में माते - गीत - उमेश यादव
कष्टों से व्याकुल मेरा मन, पीड़ा से जब भरता है। स्नेह भरे आँचल में माते, छुपने को मन करता है॥ जब भी विपदा आई मुझपर, तूने हमें बचाया है।…
अम्मा कहो! - कविता - ऋचा सिंह
जिसने बैठाई तुरपाई हर टूटे रिश्ते में झुककर बात बनाई घिसते छूटे रिश्तों में, अम्मा कहो! कैसे इतना धीर दिखाया? कैसे ऐसा किरदार बनाया? …
अंगारों को यूँ जिनके सीने में धड़कते देखा है - नज़्म - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
अंगारों को यूँ जिनके सीने में धड़कते देखा है, मेहनत कशी से वक्त फिर उनको बदलते देखा है। ये राह आसाँ तो नहीं पर लेना तुमको दम नहीं, चिं…
वही तो मेरी माता है - कविता - सुनील गुप्ता
ममता की आँचल में जिसने, छुपा कर मुझको पाला है, असीम विपत्तियाँ सहकर भी, मेरे जीवन को संभाला है, दुःख भी जिनके सामने आकर, अपना सर झुकात…
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