रवींद्र सिंह राजपूत - आगरा (उत्तर प्रदेश)
कोशिश तो कर - कविता - रवींद्र सिंह राजपूत
मंगलवार, मई 21, 2024
क्यों रुके हैं ये क़दम तेरे?
तू चलने की कोशिश तो कर,
माना की जो न मिल सका
उसके लिए अफ़सोस है
परन्तु तू आगे बढ़ने की कोशिश तो कर।
मंज़िल तेरी सुगम नहीं,
पर इस असफलता से जीवन तेरा
रुका नहीं रह जाता।
बार-बार इन काले मेघों के पीछे,
हर क्षण यह सूरज ढका नहीं रह जाता।
सहज ही मिलती नहीं
हमें सफलता कभी भी।
है श्रम की डोर तेरे हाथों में अभी भी
बिन छोड़कर इसे, बिन तोड़कर इसे,
एक बार फिर से तू कोशिश तो कर।
माना कि सामने तेरे
विकट संकटों का पहाड़ विकराल खड़ा है।
तेरे इस सफ़र का
रास्ता अभी और बड़ा है,
लेकिन तू दशरथ माँझी बनने की कोशिश तो कर।
ये राहें तेरे मंज़िल की
यूँ ही नहीं गुज़र जाएँगी।
बाधाएँ अभी आगे और भी आएँगी,
किंतु बिन घबराए, बिन ठुकराए,
तू पुनः आगे बढ़ाने की कोशिश तो कर।
यदि तू अब रुक जाएगा,
तो फिर आख़िर कैसे तू
अपने हौसलों की उड़ान भर पाएगा?
तेरे क़दमों के यूँ ही रुकने से,
जीवन पर घोर अंधेरा छा जाएगा।
मत रुकने दे अपने इन क़दमों को
आख़िर तू इन्हें आगे बढ़ने तो दे,
सफलता की सीढ़ी अभी इन्हें चढ़ने तो दे।
यूँ ही मत बन सन्नाटा तु इस जग का,
आख़िर तू चमकता तारा तो बन
तू चलने की कोशिश तो कर, तू चलने की कोशिश तो कर।
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