तुम्हारे साथ - कविता - प्रवीन 'पथिक'
सोमवार, मई 20, 2024
तुम्हारे साथ,
चलना चाहता हूॅं,
कुछ क़दम।
ठहरना चाहता हूॅं,
कुछ क्षण।
बताना चाहता हूॅं,
अपनी जिजीविषा।
डूबना चाहता हूॅं,
तुम्हारे रंग में।
लिखना चाहता हूॅं,
एक गीत।
जिसकी झॅंकार,
तेरी पायल से आती हो।
तुम्हारे साथ,
घूमना चाहता हूॅं–
वनों में, पहाड़ों पर।
पक्षियों का संगीत भी,
सुनना चाहता हूॅं;
तुम्हारे संग।
तेरी जिस्म की ख़ुश्बू में,
नहाना चाहता हूॅं।
पाना चाहता हूॅं;
सम्पूर्ण मानवता को,
उसके प्रेम से।
जीना चाहता हूॅं,
करुणा का जीवन।
मरना!
ज्वलंत चिंगारी के रूप में।
गर इच्छाएं अतृप्त रह जाएँ तो,
चिर विश्राम चाहता हूॅं;
तेरे ऑंचल में,
अनवरत्।
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