साँच कहूँ सुन साथ चले सब - सवैया छंद - महेश कुमार हरियाणवी

साँच कहूँ सुन साथ चले सब - सवैया छंद - महेश कुमार हरियाणवी | Savaiya Chhand - Saanch Kahoon Sun Saath Chale Sab - Mahesh Kumar Hariyanavi. प्रेम पर कविता
साँच कहूँ सुन साथ चले सब, 
बात यही सब को बतलाना। 
जीवन में मतभेद नहीं रख, 
द्वेष कहाँ तक है टिकपाना।
बादल भी कितना ठहरे नभ, 
आख़िर तो धरती पर आना।
मान भले मिल जा धन पाकर, 
जीवन का सच भूल न जाना॥ 

सीख रहे मन आज विभाजन 
भूल गए कल को अपनाना। 
शायद रीत बने हल साजन, 
छोड़ रहे हथियार चलाना। 
कौन यहाँ पतवार बने जन, 
तोड़ रहे सब हार पुराना। 
खोकर भी तुम पा सकते धन, 
नीयत से पर हार न जाना॥ 

खान नहीं वह पान नहीं अब 
गान नहीं जग ध्यान नहीं है। 
आन नहीं अब मान नहीं वह 
ज्ञान नहीं बलवान नहीं है। 
दान नहीं धनवान नहीं अब 
देख बचा अहसान नहीं है।
शिक्षित तो जन ख़ूब हुआ पर 
पेड़ रहा फलवान नहीं है॥ 


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