मैया मैं ठहरा संन्यासी - कविता - भगत

मैया मैं ठहरा संन्यासी - कविता - भगत | Hindi Kavita - Maiya Main Thahra Sannyasi - Mukesh Aazad | संन्यासी कविता
मैया मैं ठहरा संन्यासी
भोग विलासी सब संसारी
मुझको आत्मसुधा ही प्यारी
राम रसायन की हे मैया
आत्मा मेरी प्यासी
मैया मैं ठहरा संन्यासी 

इस जग के ये भोग न भावें 
मुझको प्रभु प्रेम के रोग सतावें 
मैया ये संसार की बातें
मेरे समझ ना आवें 
जब तक हरी ना मिल जावेंगे 
मिटेगी ना मेरी उदासी
मैया मैं ठहरा संन्यासी 

तू मुझे नारी से ब्याहना चाहे
चित्त मेरा ले गए बनवारी 
मैया मेरा साजन वो है
जिसकी माया दासी
मैया मैं ठहरा संन्यासी

भगत - केदारघाटी (उत्तराखंड)

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