नमक-खोर - कविता - विक्रांत कुमार

नमक-खोर - कविता - विक्रांत कुमार | Hindi Kavita - Namak-Khor - Vikrant Kumar | नमक खोर पर कविता
उफ्फ़
ये नमक
देह जब खटता है
पसीना नमकीन होता है
और
दिमाग़ मधुमेह
इस बार जब देह खटेगा
तब
दिमाग़ ना नमकीन होगा ना मीठा
राम कसम
सब कुछ फीका होगा

विक्रांत कुमार - बेगूसराय (बिहार)

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