नमक-खोर - कविता - विक्रांत कुमार
शुक्रवार, मई 17, 2024
उफ्फ़
ये नमक
देह जब खटता है
पसीना नमकीन होता है
और
दिमाग़ मधुमेह
इस बार जब देह खटेगा
तब
दिमाग़ ना नमकीन होगा ना मीठा
राम कसम
सब कुछ फीका होगा
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