पुरुष - कविता - वंदना गरूड़

पुरुष - कविता - वंदना गरूड़ | Hindi Kavita - Purush - Vandana Garud | पिता पर कविता, Hindi Poem On Father
पुरुष आधार है, पुरुष संबल हैं स्त्री का,
पुरुष भविष्य है आने वाले कल का,
बचपन से होती है, पुरुष से कई उम्मीदें,
बुढ़ापे तक दे जाता है पुरुष
उसकी कर्तव्य परायणता की कई यादें
अबोल होती है उसकी भावनाएँ
झेलता वो अपने बच्चों की ख़ातिर
अनगिनत निशब्द यातनाएँ
बहुत ख़ुश होता है वो
जब बेटा लायक़ होता है
अपने पिता के कंधों का
बोझ जब वो ढोता है,
कहते है बेटा बुढ़ापे का
सहारा होता है
किन्तु अगर बेटा नालायक़ हो तो
बाप जीवन भर फिर रोता है
हर बेटे से पिता को मिले वो सम्मान
जिसके ख़ातिर पिता ने अपनी 
कई ख़्वाहिशें की हैं क़ुर्बान।

वंदना गरूड़ - इंदौर (मध्य प्रदेश)

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