संदेश
ऋतुराज - कविता - राजेश 'राज'
दहक रहीं डालें पलाश की, झूमीं शाखाएँ अमलतास की। मंजरियों से पल्लवित आम हैं, कोयल कितनी स्फूर्तिवान है। ओढ़े सरसों पीली चुनरी, फूली-फूल…
मैं जगत का दास हूँ - कविता - इन्द्र प्रसाद
जग मुझे कुछ भी कहे, पर मैं जगत का दास हूँ। दोष तारों सा लिए जो, मैं वही आकाश हूँ॥ मन उसी में रम रहा जो वास्तव में है नहीं, उस तरफ़ जाता…
आशंका - कविता - प्रवीन 'पथिक'
एक घना अँधेरा! मेरी तरफ़ आता है मुँह बाए, और ढक देता सम्पूर्ण जीवन को; अपनी कालिमा से। किसी सुरंगमय कंदराओं में से, सिसकने की आवाज़ आती…
राष्ट्र की उपासना ही, अश्वमेधिक लक्ष्य हैं - गीत - उमेश यादव
राष्ट्र की उपासना ही, आश्वमेधिक लक्ष्य है। पराक्रम से राष्ट्र रक्षा, यज्ञ संस्कृति रक्ष्य है॥ अश्व है प्रतीक साहस, शौर्य और पुरुषार्थ …
बिंदु-बिंदु शिल्पकार है - कविता - मयंक द्विवेदी
सीमित ना हो दायरा उर के द्वार का, प्रकृति भी देती परिचय दाता उदार का। यूँ ही नहीं होता सृजन उपलब्धि के आधार का, छूपी हुई नींव में आरंभ…
अपनापन - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
खोता जीवन सुख अपनापन, वह स्वार्थ तिमिर खो जाता है। कहँ वासन्तिक मधुमास मिलन, पतझड़ अहसास दिलाता है। भौतिक सुख साधन लिप्त मनुज,अपनापन क…
मेरा गाँव - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मेरे गाँव की सोधीं मिट्टी, अम्मा की भेजी चिट्ठी। स्कूल से हो जब छुट्टी, वो बात-बात पर खुट्टी। हर बात याद क्यूँ आती? ना भूली मुझसे जाती…
करो मात-पिता सेवा - मनहरण घनाक्षरी छंद - अजय कुमार 'अजेय'
करो मात-पिता सेवा, मिले जीवन मे मेवा, ऐसे महानुभाव का, भाग्योदय मानिए। सदा सेवा भाव रखे, मान सम्मान भी करे, जग में सबसे बड़ा, बादशाह ज…
श्रीराम वनवास - मुक्तक - संजय परगाँई
सुनो अवधेश तन मन में, सदा रघुकुल धरोगे तुम, दिया जो था वचन तुमने, उसे पूरा करोगे तुम। यही बस माँगती तुमसे, कहे ये आज कैकेयी, भरत को सौ…
सरस्वती वंदना - कविता - गणेश भारद्वाज
हे हंस वाहिनी, ज्ञान दायिनी मुझ पर अपनी कृपा करो मैं भी हूँ तेरा सेवक माता माँ मेरा भी कल्याण करो। मेरे मन की बात सुनो माँ कलम में मेर…
मॉं ज्ञानदेय - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया
करूँ मॉं आराधना तेरी, वंदना स्वीकार कर लेना। निज चरणों में दे शरण, भण्डार ज्ञान से भर देना। इस अनभिज्ञ दुनिया में, श्रेष्ठ संस्कार सब …
बसंत का आगमन - कविता - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'
ऋतुराज आया है मनोहर धरती पे छाई है रौनक़ मन बसंती हो गया है माँ शारदे का रूप है मोहक ऋतु शरद की आई विदाई धरती माँ ले रही अँगड़ाई पतझड़ …
हे हंसवाहिनी माता - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
हे हंसवाहिनी माता! अब हम पे रहम करना। हम तेरे ही बालक हैं, माँ हमपे करम करना। सुन मेरी करुण कहानी, माँ दूर करो नादानी। मैं दुर्बल सठ अ…
वसन्त पञ्चमी - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
नव वसन्त तिथि पञ्चमी शुभा, पावन दिन मधुमास मधुर है। पूजन अर्चन विनत ज्ञानदा, विद्याधन अभिलास मधुर है। सरस्वती माॅं भारत मुदिता, हंसवाह…
बसंत का त्यौहार - कविता - बिंदेश कुमार झा
शीत के प्रताप प्रभाव हो रहा व्याकुल संसार, प्रसन्नता का आयाम लेकर आया बसंत का त्यौहार। सो रही कलियाँ उठ रही है अँगड़ाई लेते, वायु सँजोए…
हे! मृदु मलयानिल अनुभूति - कविता - राघवेंद्र सिंह
हे! अंतस की चिर विभूति, हे! मृदु मलयानिल अनुभूति। तुमसे ही होते मुखर भाव, कम्पित पुलकित दृग के विभाव। तुम लेकर आती नव विहान, द्रुत चपल…
मुझे देखकर अब उसका शर्माना चला गया - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
मुझे देखकर अब उसका शर्माना चला गया, राह देखने वाला आज ज़माना चला गया। जैसे बच्चे जीते बेफ़िक्री में जीवन को, आज बुज़ुर्गों से उनका डर जान…
लौट फिर बसन्त आया - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया
पीत वर्णी पुष्पित ओढ़ चुनरिया, निज आँगन वसुंधरा ने सजाया। फैला चहुँओर उत्साही नज़रिया, लगता लौट फिर बसन्त आया। बगिया में ठूॅंठ सा खड़ा…
मौन बना महाशस्त्र - कविता - छगन सिंह जेरठी
किसी अनजाने ग़म ने घेरा है, तभी से ख़ामोशी का डेरा है। फिर मौन बना महाशस्त्र... एक अकेला क्या करता मैं, डरता ना तो फिर मरता मैं। फिर मौन…
विश्वास रखो मैं लौटूँगा - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
रोना मत सजनी विरही बन, विश्वास रखो मैं लौटूँगा। सुन लो पुकार तुम सीमा पर, सीमांत विजय कर लौटूँगा। भारत पड़ोस सुन लो गर्जन, प्रिय सिं…
बदलते हालात - कविता - महेश कुमार हरियाणवी
अच्छी बातें अच्छी लगती, अच्छों का दे साथ। बुरे स्वयं मर जाएँगे जब, बदलेंगे हालात। पथ कहाँ कब एक रहा, रही हिलती-डुलती साख। सूरज आख़िर न…
हे राम! - कविता - प्रवीन 'पथिक'
हे राम! तुम्हारे जीवन की झाँकियाॅं, मेरे अंतर्मन को रुदन जल से अभिसिंचित कर, कृतार्थ करती है, जो मुझे पुण्य मार्ग के तरफ़ प्रवृत्त करती…
धरे रहे सब ख़्वाब - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
धरे रहे सब ख़्वाब, आँखें बोझिल थी। आसूँ की सौग़ात, सावन को भी मात, हाथों में नहीं हाथ, छूटा स्नेह का साथ, पर मधुर रहा बोल, शायद कोयल थी।…
शिक्षा, ज्ञान और विद्यार्थी - कविता - सिद्धार्थ 'सोहम'
लगता है हार रहा हूँ मैं, ख़ुद से, या ख़ुद को, जो सपने सँजोए वो शायद मेरे थे ही नहीं, जो हैं तो, लगता है थोपे गए है, बचपन से तुलना मेरी ह…
शिशिर सुंदरी - कविता - सतीश पंत
नवल भोर संग धवल कुहासा शिशिर ओढ़ जब आई, वसुंधरा से शैल शिखर तक मेघावली सी छाई। शिशिर सुंदरी रूप मनोहर देख देह सकुचाई, शीत वायु के प्रब…
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