सुनो अवधेश तन मन में, सदा रघुकुल धरोगे तुम,
दिया जो था वचन तुमने, उसे पूरा करोगे तुम।
यही बस माँगती तुमसे, कहे ये आज कैकेयी,
भरत को सौंप दो सब अब, बड़े सुत को हरोगे तुम॥
हुए नम नैन सबके ही, विरह की अब घड़ी आई,
अवध डूबा दुखों में है, उदासी की लहर छाई।
मिला वनवास रघुवर को, रहो चौदह वरष वन तुम,
वचन सुनकर पिता के ये, गए वनवास रघुराई॥
महल तजकर धरा पर अब, शयन करने लगे रघुवर,
सहज भोजन तजा कंदे, जड़ें खाने लगे रघुवर।
अवध का राज त्यागा है, महल सुख छोड़कर सारे,
लखन औ संग सीता माँ, वनों रहने लगे रघुवर॥
संजय परगाँई - ओखलकांडा, नैनीताल (उत्तराखंड)