हे! मृदु मलयानिल अनुभूति - कविता - राघवेंद्र सिंह

हे! मृदु मलयानिल अनुभूति - कविता - राघवेंद्र सिंह | Hindi Kavita - Hey Mrudu Malyaanil Anubhooti
हे! अंतस की चिर विभूति,
हे! मृदु मलयानिल अनुभूति।
तुमसे ही होते मुखर भाव,
कम्पित पुलकित दृग के विभाव।

तुम लेकर आती नव विहान,
द्रुत चपल तरंगों का विधान।
निष्प्राण, शून्य जागृत करती,
तुम शाश्वत स्पंदन भरती।

तुम आती लेकर नवल हार,
स्वप्नों की अवगुंठित पुकार।
श्वासोंं की थिरकन खुल जाती,
नयनों की आशा धूल जाती।

तुमसे ही उठता महा ज्वार,
धाराओं का तंद्रिल विहार।
प्राणों की तृष्णा मिट जाती,
संशय की चादर छिंट जाती।

करुणानत होते स्वयं शब्द,
अंतर्मन होता प्रणय लब्ध।
स्वर गीतों को देते प्रवाह,
स्निग्धमयी नव ललित राह।

तुमसे होता प्रत्यक्षवाद,
तुमसे ही जन्मता है संवाद।
तुम रस रहस्य की मनोभूति,
हो धन्य जगत में अनुभूति।


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