सरस्वती वंदना - कविता - गणेश भारद्वाज
बुधवार, फ़रवरी 14, 2024
हे हंस वाहिनी, ज्ञान दायिनी
मुझ पर अपनी कृपा करो
मैं भी हूँ तेरा सेवक माता
माँ मेरा भी कल्याण करो।
मेरे मन की बात सुनो माँ
कलम में मेरी, धार भरो
करूँ मैं तेरी सेवा माता
ज्ञान का मुझ में सार भरो।
शब्द में तू है, कलम में तू है
मेरी वाणी में, हुँकार भरो
बनू सारथी मूक जनों का
ऐसा माँ उपकार करो।
तेरी दया हो जिस पर मैया
उसका बेड़ा पार हुआ
जनमानस का, बना हितैषी
भवसागर से वह, पार हुआ।
आन बसो मेरे शब्दों में
माँ इतनी सी पुकार सुनो
ज्ञान के दीप, जलें चहुँओर
ऐसा माँ आधार बुनो।
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