शिक्षा, ज्ञान और विद्यार्थी - कविता - सिद्धार्थ 'सोहम'

शिक्षा, ज्ञान और विद्यार्थी - कविता - सिद्धार्थ 'सोहम' | Hindi Kavita - Shiksha Gyaan Aur Vidhyarthi - Siddharth Soham, Hindi Poem on Education. शिक्षा पर कविता
लगता है हार रहा हूँ मैं,
ख़ुद से, या ख़ुद को,
जो सपने सँजोए वो शायद मेरे थे ही नहीं,
जो हैं तो, लगता है थोपे गए है,
बचपन से तुलना मेरी हो रही है
जीवन की जीवन से अवहेलना मानो हो रही है,
कहते हैं किसी को देखकर तुझे उस जैसा बनना है
अरे, ये क्या तर्क हुआ, पर जो भी हो सहना है।
अब तो किताबें भी बोझ सी लगती हैं
ज़िम्मेदारी अदा करने की होड़ सी लगती हैं
शर्मा जी का बेटा अगर आगे निकल गया
वर्मा जी खाना नहीं खाते
सारा ग़ुस्सा बस बेटे पर उतारते

विद्यार्थी आज तक कराह रहा है,
आख़िर क्यों बचपन मारा जा रहा है
क्यों ये सारे बहरे हो गए हैं 
क्रिकेट मैच पर ख़ूब ताली बजाते
खिलाड़ियों का उत्साह भी बढ़ाते
संगीत भी सुनते हैं, मनोरंजन भी देखते हैं
पर बेटा कह दे कि उपर्युक्त करना है 
तो उठाना तो दूर
गड्ढा खोदकर पहले उसे ही गिराते
दुनिया से हारने से पहले ही उसे हराते 
पढ़ाई बहुत कुछ होती है, पर सब कुछ नहीं
जो पढ़ेगा वही बढ़ेगा, नहीं,
जो मेहनत करेगा वो ही बढ़ेगा 
मेहनत से अंधा भी सूरदास बनेगा
कर्मयोग ने ही विवेक से आनंद को मिलाया
तभी वो बच्चा नरेंद्र विवेकानंद कहलाया॥

यदि होती शिक्षा रटना और रटाना
तो होता मुश्किल आज मशीनों से जीत पाना 
जो कर सके न चरित्र निर्माण
वो शिक्षा अधुरी है
और अधूरा है ज्ञान 
अर्थात्, सिर्फ़ प्रगति नहीं होती शिक्षित की अभिलाषा,
संपूर्ण ज्ञान और चरित्र निर्माण ही बनाती सही जीवन आकांक्षा,
वास्तव में यही तो है सही शिक्षा की परिभाषा॥

सिद्धार्थ 'सोहम' - उन्नाओ (उत्तर प्रदेश)

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