संदेश
छोड़ के संबंध पकड़े शब्द हैं - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 212 छोड़ के संबंध पकड़े शब्द हैं, आज भी ज़ेहन में चिपके शब्द हैं। सोच कर थोड़ा संभल…
कलम - कविता - डॉ॰ मीनू पूनिया
रंग रूप और भिन्न आकार, लिखने का मैं करती काम। छोटी बड़ी और रंग बिरंगी, मीनू मेरा कलम है नाम। प्राचीन ग्रंथों की बनावट में, मैंने ही तो…
फूल मुस्कुराते हैं - कविता - डॉ॰ कुमार विनोद
मुस्कुराने के लिए ज़रूरी नहीं पूरी तरह विज्ञापन में उतर जाना इन्सान के लिए तनाव रहित मस्तिष्क और पेट में अनाज का तिनका होठों की परिधि म…
जीव और प्राणी - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
हर जीव, हर प्राणी का जीवन आधार है जल, जंगल, ज़मीन, मानव ही प्राणी कहलाते बाक़ी सब हैं जीव। कहते हैं चौरासी लाख योनियों के बाद फिर मानव त…
वह चिट्ठी-पत्री वाला प्यार - गीत - रमाकांत सोनी
याद बहुत आता है वह ज़माना वह संसार, पलकों की बेचैनी वह चिट्ठी-पत्री वाला प्यार। दो आखर पढ़ने को जाते महीनों गुज़र, चिट्ठी मिलती ऐसे जैसे…
मुक्ति संघर्ष - कविता - आशीष कुमार
पिंजड़े में क़ैद पंछी, करुण चीत्कार कर रहा। ऊपर गगन विशाल है, वह बंद पिंजड़े में रह रहा। टीस है उसके दिल में, तिल-तिल कर है मर रहा। निर…
विश्वात्मा हो कहाँ तुम? - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
मैं तो कुछ कहता नहीं, फिर भी मेरी आँखें हैं कहती। जो कभी मैं देखता नहीं, वे सारी राज़ हैं ये खोलती। और कि विश्वास मेरा कहता है चीत्कार …
काश - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
काश! काश! तुम दूर न होते। हम भी ज़्यादा मजबूर न होते। गर तुम्हारा इश्क़ नहीं होता, तो हम इतने मशहूर न होते। तुम्हारे चेहरे की रंगत से, ह…
छवि (भाग १८) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
(१८) पंथ पारसी कहे जगत से, अहुरमजदा अनंत हैं। आशा का क़ानून इन्हीं से, सत्य-धर्म सिद्धांत है।। चिन्ह अहुरमजदा का पावक, सर्वोच्च शक्तिमा…
हाउ मैन इज़ सोशल एनिमल - कविता - पंकज कुमार 'बसंत'
मनुज-स्वान-गर्दभ-उलूक की निर्धारित थी पहले सम वय, सोच समझ कर प्रभु ने की थी, सबकी चालीस वर्ष वय, तय। सभी मगन थे, कभी लगन में, जीवन में…
आ सूरज हम साथ में खेलें - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सदाचार कौलिक माणिक बन, जीवन में सूरज बन चमकें। सदाचार अरुणाभ चरित बन, नभ प्रभात सूरज बन दमकें। नव प्रभात सतरंग मुदित मन आ सूरज हम साथ …
ये वक़्त जो खिसक रहा हैं चाँद की उड़ान में - ग़ज़ल - कर्मवीर सिरोवा
अरकान : मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन तक़ती : 1212 1212 1212 1212 ये वक़्त जो खिसक रहा हैं चाँद की उड़ान में, उत्सुकता की चादर फ…
हांँ भारत की नारी है वो - कविता - राघवेंद्र सिंह
कहीं चांँदनी सी है चंचल, कहीं दामिनी सा उद्घोष। कहीं करुण सी है तरुणाई, कहीं ज्वाल सा दिखा रोष। फूल नहीं चिंगारी है वो, हांँ भारत की न…
दिनमान - कविता - सीमा वर्णिका
प्राची से रवि का हो रहा आगमन, ला रहा वह संग भोर भरा दामन। शीतल सुवासित बयार बहने लगी, मनमोहक पुष्पों से निखरा चमन। धूप की चादर तन गई च…
दो कजरारी आँखों में - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा तक़ती: 22 22 22 2 दो कजरारी आँखों में, इन उजियारी आँखों में। सारी दुनिया दिखती है, हमें तुम्हारी आँखों म…
सीखो - कविता - गणेश भारद्वाज
हालात बदलते रहते हैं, हिम्मत करके लड़ना सीखो। समय बड़ा बलवान रहा है, साथ समय के चलना सीखो। झूठ कभी दौड़ नहीं सकता, सच के पथ पे चलना सी…
छवि (भाग १७) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
(१७) धर्म निभाया रामचंद्र ने, धारण कर के सत्य को। सत्य-शक्ति से मात दिलाया, दस ग्रीव असत्य को।। कर्तव्य-त्याग पालन कर के, रामराज्य काय…
सिंहनी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
स्वर्ण की ज़ंजीर बाँधे, स्वान फिर भी स्वान है। धूल धूषित सिंहनी, पाती सदा सम्मान है। आत्मनिर्भर स्वाभिमानी, शौर्य ही पहचान है। हार ना …
पीढ़ी का अंतर - लघुकथा - मंजिरी 'निधि'
हैलो! कैसी है? तबियत तो ठीक है ना? रोहिणी ने कल्पना से पूछा। कल्पना बोली हाँ बस ठीक ही हूँ । बेटा-बहु बच्चों के साथ आज नखराली ढाणी गए …
श्राप यह स्वीकार - कविता - डॉ॰ गीता नारायण
कृष्ण ने कहा गंधारी से; माता, श्राप यह स्वीकार। ना लाना मन में कोई ग्लानि और आत्म-धिक्कार। तुम्हारा श्राप यह स्वीकार। यदुकुल में जब म…
मेरी संगिनी - कविता - सुनील माहेश्वरी
तुम्हीं मेरी प्रेरणा, तुम ही मेरा विश्वास हो, तुम मेरी संगिनी। मेरे खोए आत्मविश्वास को हमेशा जाग्रत करती हो, तुम मेरी संगिनी। चाहे परि…
माँ का प्रेम - कविता - मनस्वी श्रीवास्तव
ना होकर भी जो संग मुझमे निहित साकार है, मेरा रूप रंग मनोवृत्ति सब जो भी आकार है। माँ ही तो अलंकार है मेरे चित्त की चित्रकार है। मन की …
नशा मुक्ति - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता'
ख़ुद भी जागें औरों को जगाएँ, नशामुक्ति अभियान चलाएँ। भूलवश करें न ऐसी करतूत, रहे ना जिससे सेहत मज़बूत। अपनी भूलों को कर क़बूल, अपनाएँ जीव…
मैं एक लम्हा भी ख़ुद से न मिल सका तन्हा - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
अरकान : मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 1212 1122 1212 22 मैं एक लम्हा भी ख़ुद से न मिल सका तन्हा, वो मेरे साथ रहा जब भी मैं…
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