छवि (भाग १८) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'

(१८)
पंथ पारसी कहे जगत से, अहुरमजदा अनंत हैं।
आशा का क़ानून इन्हीं से, सत्य-धर्म सिद्धांत है।।
चिन्ह अहुरमजदा का पावक, सर्वोच्च शक्तिमान है।
दिव्य-ज्योति हर जन-मानव के, भीतर प्रकाशमान है।।

शैतान जनक असत्य के हैं, सात फ़रिश्ते हैं महा।
सदविचार सद कर्म-शब्द से, विजय प्राप्त करना यहाँ।।
सत्यनिष्ठता क्षमा-दया, सहनशीलता धार लो।
कर्तव्य करो, वचन न तोड़ो, जीवन स्वयं सँवार लो।।

राग-द्वेष से नाता तोड़ो, जोड़ो नाता प्यार से।
दूर रहो हिंसा बदसंगत, तर्क और तकरार से।।
सम्मान बड़ों को देना सीखो, बचे रहो व्यभिचार से।
दूर रहो अहं-क्रोध-लालच, गंदे सोच विचार से।।

जन्दावस्ता में वर्णन है, क्रमवार नाम आर्य का।
जरथुस्त्री मत दिखलाता पथ, प्रेम और सौहार्द का।।
मानव हित के लिए निरंतर, पारसी धर्म आगे बढ़ा।
मानवता का पाठ पढ़ाकर, सतत हुआ जग में खड़ा।।

डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी' - गिरिडीह (झारखण्ड)

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