सीखो - कविता - गणेश भारद्वाज

हालात बदलते रहते हैं,
हिम्मत करके लड़ना सीखो।
समय बड़ा बलवान रहा है,
साथ समय के चलना सीखो।

झूठ कभी दौड़ नहीं सकता,
सच के पथ पे चलना सीखो।
सच्चाई की होती है जय,
झूठों से मत डरना सीखो।

नदिया राह बनाती ख़ुद है,
पानी सा तुम बढ़ना सीखो।
आँधी, बारिश सब आने दो,
चट्टानों सा अड़ना सीखो।

औरों की तुम बातें छोड़ो,
ख़ुद को पहले पढ़ना सीखो।
तुम्हारा भी वक़्त आएगा,
बस थोड़ा सा सहना सीखो।

आना जाना चलता आया,
हाथ कभी न मलना सीखो।
जो आया है वो जाएगा,
धीरे-धीरे बढ़ना सीखो।

काली अँधेरी रातों को,
जुगनू सा बस जलना सीखो।
हो तूफ़ान भले ही क्यों न,
अड़ कर उनसे बढ़ना सीखो।

झूठ धरा पे बोझ बना है,
सच की ख़ातिर मरना सीखो,
कर्मों की नौका को लेकर,
भवसागर में तरना सीखो।

गणेश भारद्वाज - कठुआ (जम्मू व कश्मीर)

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