वह चिट्ठी-पत्री वाला प्यार - गीत - रमाकांत सोनी

याद बहुत आता है वह ज़माना वह संसार,
पलकों की बेचैनी वह चिट्ठी-पत्री वाला प्यार।

दो आखर पढ़ने को जाते महीनों गुज़र,
चिट्ठी मिलती ऐसे जैसे जीवन गया सुधर।

काग़ज़ के संदेशों में हम फूले नहीं समाते,
देख-देख कर चिट्ठी को मन ही मन बतियाते।

शब्द-शब्द हर्षित कर जाते उमड़ता प्रेम अपार,
दिल से दिल का रिश्ता वह चिट्ठी-पत्री वाला प्यार।

रोज़ निगाहें लगा देखना टक-टक राहें निहारे,
कभी अचानक हँस जाना कभी बाल सँवारे।

मन को बहुत लुभाता वह सुंदर सजीला संसार,
याद बहुत आता है हमको चिट्ठी-पत्री वाला प्यार।

मोबाइल अब हो गया साधन सुगम बेतार,
टूट रहे रिश्ते नाते आपस में रहा ना प्यार।

फेसबुक और व्हाट्सएप पर बस चैटिंग ही चलती,
अपने मतलब की सारी अब केवल सेटिंग चलती।

दुनिया भर की सैर करे पड़ोसी को ना जाने,
व्यस्त रहे मोबाइल में कैसे है ये अफ़साने।

मधुर मनोहर मनमोहक वह यादों का संसार,
याद बहुत आता वह चिट्ठी-पत्री वाला प्यार।

रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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