काश - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी

काश! काश! तुम दूर न होते।
हम भी ज़्यादा मजबूर न होते।
गर तुम्हारा इश्क़ नहीं होता,
तो हम इतने मशहूर न होते।
तुम्हारे चेहरे की रंगत से,
हर हीरा चमका करता है।
गर तुम्हारी चमक नही होती,
तो हीरे कभी कोहिनूर न होते।
काश! काश! तुम दूर न होते।

इल्ज़ाम तुम्ही पर लगता है,
जो क़ातिल तेरी निगाहें हैं।
मैं क़त्ल होने पर आमादा हूँ,
खुली हुई मेरी बाहें हैं।
तुम इतने हसीं नही होते,
तो मुझ में इतने ग़ुरूर न होते।
काश! काश! तुम दूर न होते।

तुमसे कहीं ज़्यादा चंचल,
तुम्हारी बेबाक सी यादें हैं।
तुम्हे जी भर के देखें हर पल,
ये ख़ुद से किए हुए वादे हैं।
गर तुम यादों में नही आते,
तो ज़ेहन में मेरे सुरूर न होते।
काश! काश! तुम दूर न होते।

सिद्धार्थ गोरखपुरी - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

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