संदेश
घनी छाँव बन जाइए - कविता - डॉ. विजय पंडित
जिंदगी सबसे हँसी खुशी मिलजुल कर बिताइए..... आज के हालात में कल का कुछ पता नहीं गिले शिकवे शिकायत सब तुम भूल भी अब जाइए.... जिंदगी भर…
युवा का प्रलाप - गीत - दिवाकर शर्मा "ओम"
भारत का यूवा कहता है , निश दिन वह यह गम सहता है । ताने सहता है इस जग के , अपनी प्रतिभा उर में रख के । वह भारत का शक्ति बिन्दु है , नव …
मोबाइल - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
मोबाइल जीवन का अभिन्न अंग बन गया है, ऐसे लगता है इसके बिना जीवन में रखा ही क्या है? मोबाइल जन की जरूरत है, इसके बिना जीने की अब न को…
कोरोना योद्धाओं को सलाम - आलेख - संस्कृती शाबा गावकर
कोरोना वैश्विक महामारी ने अब तक पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया है। दुनिया भर में इस वाइरस की वजह से संक्रमण तथा मौत के आकड़े बढ़ते…
मिटे भोर पा अरुणिमा - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सुन्दर मधुरिम मांगलिक, हो जीवन उल्लास। हो उदार मानस मधुर, नवप्रभात उद्भास।।१।। प्रतिमानक लेखन बने, देश काल परिवेश। सत्य पूत अभिव्यक्ति…
मंजिल का पता पूछो धार से - कविता - उमाशंकर राव "उरेंदु"
मंजिल वो नहीं होती जहाँ हम जाना चाहते हैं मंजिल वो होती है जहाँ वह हमें ले जाती है। यह अलग बात है कि हम मंजिल को देखते हैं और मंजि…
सफ़र के - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
खुद से मिलने की जिद कर के बैठी हूँ नज़दीक भँवर के आज सुकूँ से क़दम बढ़ रहे खिलता है दिल, रोज़ निखर के दोपहरी भी ठंडी लगती खुश है दिल में, …
और हम क्या करते - कविता - उमाशंकर मिश्र
वो तो मांग रही थी मौत की दुआ, हम अपनी जिंदगी नही देते तो और क्या करते। उसके आंसूओं मे छिपी थी बेदनाये, जूलफ लहरा रही थी, सो रही थी सं…
पाशविकता - गीत - संजय राजभर "समित"
नोंच-नोंच कर लूट लिए हैं, फिर एक अबला की जवानी। भीगी पलकें सुना रही हैं, एक अनकही मौन कहानी। छटपटायी हूँ रातभर …
आगाज़ ए सुकून - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
हर परिंदे को आशियाना चाहिए। उसे जीने को आबोदाना चाहिए। अलीअल सुबह रोज जब निकल पड़े, शाम पहर घर को लौट आना चाहिए। खुश्क हो गए…
चंदा मामा - बाल कविता - कपिलदेव आर्य
चंदा मामा, चंदा मामा, तुम हो कितने प्यारे मामा! दूर गगन में चम-चम चमके, जग से न्यारे-न्यारे मामा! हमको लोरी देकर मामा, तुमको आता ख़ूब…
परिणीता - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जीवन्त हृदय अरुणिम प्रभात, नवजीवन की प्रिय आभा हो। बन इन्द्रधनुष नीलाभ हृदय, सतरंग ललित मधु छाया हो। शृङ्गार शतक सज पाटल तन, अभ…
संयुक्त परिवार-बरगद की छाँव - लेख - अंकुर सिंह
जब मैं घर से ऑफ़िस के लिए निकलता हूँ तो, रास्ते में मोड़ पर एक बरगद का पेड़ पड़ता हैं, लगता है बरगद का पेड़ कहता हैं मुझसे कुछ, बरगद के पे…
बेटियाँ - कविता - डॉ. राजकुमारी
जिस देश में शिशु बालिकाएं कोख में औजारों से अंग-अंग कटवाई जाती हैं। पेटी, डस्टबिन, नालों, मन्दिर की सीढ़ी अनाथालयों के आगे भी पाई जात…
ख़ाक़ का इक ढ़ेर हूँ - ग़ज़ल - सुषमा दीक्षित शुक्ला
प्यार मेरा आजमा कर देख लो। इक दफा मुझको बुला कर देख लो। रात ओ दिन जल रही शम्मे वफ़ा। हो सके तो पास आकर देख लो। खाक का इक ढेर हूं तुम बि…
मासूम पेड़ - कविता - हरदीप बौद्ध
मुझको सब घर पर लाते पानी खूब पिलाते हैं, होता हूँ जब बड़ा मै मुझे आरी से कटवाते हैं। मै अपनी व्यथा किसी को बता नहीं पाता हूँ, देखो मै र…
बेटियाँ - कविता - रज्जन सिंह
घर के सूने आँगन का उजाला हैं बेटियाँ। बचपन मे मुस्कुराने की वजह हैं बेटियाँ। माँ की भूख तो पिता की प्यास हैं बेटियाँ। सभी रूपों को …
तृष्णा - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
आज कवि ढूढने चला मन तृष्णा का उपचार मन की तहो को खोलकर कवि उलझा बारम्बार ।। तृष्णा दु:ख का कारण तृष्णा है संताप दैहिक दैविक भौतिक तीनो…
व्हाट्सएप का झोल खुल गई पोल - व्यंग्य कथा - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
आजकल अंग्रेजी के डी का महत्व बहुत हो गया है डिजिटल जमाने में हाल-चाल भी कैद हो गए हैं, अब कैसे हैं हम? कैसे बताएं? और खुद को हम कैसे द…
बेटी की तमन्ना - कविता - सुनीता रानी राठौर
बेटी की तमन्ना पहचान बनायें अपनी, करें उजाला शिक्षा से जीवन में अपनी। दे दो हक हमें स्वयं खुद निर्णय लेने की, हटाओ पाबंदियां आजादी दो …
सब खोकर होती विजय - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मुदित मना सब हो मुदित, खिले अधर मुस्कान। कौन कहे कब हो यहाँ, लघु जीवन अवसान।।१।। जीवन समझो युद्ध है, दो अपना अवदान। पाप पुण्य कुरुक…
व्यवहार कुशलता है बुद्धिमत्ता का पैमाना - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मनुष्य की बुद्धिमत्ता का पता उसके व्यवहार से चल जाता है। सामाजिक बुद्धिमत्ता अथवा व्यवहारिक बुद्धिमत्ता विशेष रूप से हमारे बहुत बड़े द…
पानी - कविता - उमाशंकर राव "उरेंदु"
जरा गर्दन उचकाकर देखो आसमान की तरफ धरती पर आने को आतुर है कोई बूँद बनकर पेड़ों की फुनगियां पकड़ कर पर हाय! तुम निष्ठुर ! धरा के सारे…
माता पिता के दायित्व - लेख - सुधीर श्रीवास्तव
आज के इस व्यस्त वातावरण और तकनीकी युग में माता पिता के लिए भी अपने दायित्वों का निर्वहन कठिन होता जा रहा है। बढ़ती महँगाई ने जीवकोपार्ज…
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