आगाज़ ए सुकून - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"

हर   परिंदे  को  आशियाना  चाहिए।
उसे  जीने  को  आबोदाना   चाहिए।

अलीअल सुबह रोज जब निकल पड़े,
शाम पहर घर को लौट आना चाहिए।

खुश्क हो गए गले  दोपहर की धूप से,
दो बूंद आसमां  को बरसाना चाहिए।

बुलबुल   बहारों  में  मस्त  हो  गा रहे,
सैयाद से अब इसको बचाना चाहिए।

लगा हो क़ल्ब में जो दाग़ उसको फिर,
आब-ए-ज़मज़म से मिटाना चाहिए।

सरहद पे 'अनजाना' की खबर पहुंचे,
दुश्मन पे  हमला  कातिलाना चाहिए।

महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos