मोबाइल - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

मोबाइल जीवन का 
अभिन्न अंग बन गया है,
ऐसे लगता है इसके बिना
जीवन में रखा ही क्या है?
मोबाइल जन  की जरूरत है,
इसके बिना जीने की
अब न कोई सूरत है।
मोबाइल हमारी दिनचर्या का
हिस्सा हो गया है,
इसके बिना अब जीवन 
मात्र किस्सा भर हो गया है।
ये सच है कि मोबाइल
हम सबकी जरूरत है 
परंतु ध्यान रहे 
सिक्के का दूसरा पहलू भी है,
इसके बहुत सारे 
नकारात्मक पक्ष भी हैं।
यदि हम इसका उपयोग 
जरूरत के हिसाब से करेंगे
तब तक तो सब ठीक है,
मगर यदि हमनें नशे की तरह
आदत बनाने की कोशिशें की
तो बहुत खतरनाक भी है।
कहा भी जाता है
अधिकता हर चीज की बुरी होती है,
फिर भला मोबाइल 
कहाँ इससे बच सकती है।
इसलिए मोबाइल का भी सम्मान करो,
इसकी जरूरत समझो, उपयोग करो,
मगर मोबाइल के गुलाम न बनो
इससे बचकर रहो।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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