और हम क्या करते - कविता - उमाशंकर मिश्र

वो तो मांग रही थी मौत की दुआ,
हम अपनी जिंदगी नही देते
तो और क्या करते।

उसके आंसूओं मे छिपी थी बेदनाये,
जूलफ  लहरा रही थी,
सो रही थी संवेदनाये,
वो तो केवल यह कह रही थी 
मुझे ख्यालो मे बसा लेना। 
जालिमो के जुल्म से वो रो रही थीज़ 
हम झूठी दिलाशा नही दिलाते
तो और क्या करते।

हर जालिम की बूरी निगाह उसे घूर रही थी,
उसकी भावनाओ को चकनाचुर कर रही थी,
वह सदमे मे थी,
लाचार मौत उसे बुला रही थी 
और हम उसको न समझाते
तो और क्या करते।

वह गमगीन थी, परेशान थी, नत मस्तक थी,
आँसुओ का सैलाब थी
और हम खूद अपने सर को न पटकते
तो और क्या करते।

उमाशंकर मिश्र - मऊ (उत्तर प्रदेश)

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