घनी छाँव बन जाइए - कविता - डॉ. विजय पंडित

जिंदगी सबसे हँसी खुशी
मिलजुल कर बिताइए.....
आज के हालात में कल का कुछ पता नहीं 
गिले शिकवे शिकायत 
सब तुम भूल भी अब जाइए....
जिंदगी भर हमेशा ही सही बात कहते रहे
बहुतों की नजर में बेसबब खलते रहे
छोड़ तकरीरें सब यहीं 
नजीर पेश करते तुम जाइए....

लोग मौसमों की तरह गर बदलते रहें
किये वायदों इरादों से वे अक्सर पलटते रहें
फिर भी दूआएं सबको 
देते चले तुम  जाइए....

लाख बुरी कहतें हों दुनियां को, फिर भी
नेक और रहमदिल लोगों की भी कमी नहीं 
प्यार, मोहब्बत अमन के पैगाम से
खुशनुमा माहौल तुम अब बनाइए....

मशहूर बेशक हों जमानें में कितने भी
मशरूफ़ जितने भी रहो दुनियां जहान में
पर अपनों से तो दूरियां
इस कदर यूँ ना तुम बढ़ाइए....

नफरतों सियासी तकरीरों को छोड़  जरा 
बेसहारों का बन सहारा
मुसाफ़िरों के लिए 
घनी छाँव तुम बन जाइए....

जिंदगी सबसे हँसी खुशी मिलजुल कर बिताइए....
आज के हालात में कल का कुछ पता नहीं
गिले शिकवे शिकायत 
सब तुम भूल जाइए....

डॉ. विजय पंडित - मेरठ (उत्तर प्रदेश)

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