संदेश
मदिरा - कविता - शेखर कुमार रंजन
ना जाने क्यों? कुछ लोग, मदिरा को अमृत समझते है। हर वक्त इनके दिलों-दिमाग में, मदिरा ही बसते है। ना जाने क्यों? कुछ लोग, मदिरा…
सीख लिया - कविता - चीनू गिरि
हमने चुप रहना सीख लिया , दर्द हंसकर सहना सीख लिया ! अब तन्हाई से डर नही लगता , खुद से बात करना सीख लिया ! एक एक करके सब सपने टुट…
कोरोना खत्म - कविता - कवि प्रशांत कौरव
हमने सभी काम अपने छोड़ दिये हैं दाँत कोरोना के मिलके तोड़ दिये हैं घर मे रहे फिर भी तुझे हरा हमने दिया बाहर खड़े खड़े तूने कर क्या ल…
ऋतु सावन की - गीत - कुमार निर्दोष
आये सखी ना, ना बालम आये ऋतु सावन की, बीती जाये किससे करूँगी मैं मन की बतिया दिन भये दुश्मन, भईं बैरी रतिया विरहा की राते…
हे! कान्हा हे! मोहन मेरे - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
गोवर्धन धारी हे! कान्हा,बन जाओ रखवारे। हे! कृष्णा हे! मोहन मेरे तुम बिन कौन उबारे। हर कोई है व्यथित यहाँ, तो कोरोना के मारे। थ…
परिवेश सुरक्षा जीवन रक्षा - कविता - मधुस्मिता सेनापति
स्वच्छ सुंदर वातावरण जिसको प्रकृति करती है आमंत्रण जो प्रकृति का है आवरण यही तो है हमारा पर्यावरण.......!! पृथ्वी में बढ़ रहा ह…
बटोहिया के तान - भोजपुरी कविता - आचार्य पंडित अखिलेश्वर पाण्डेय
सुंदर सुभूमि भैया भारत के देशवा से, मोरे प्राण बसे हिम-खोह रे बटोहिया। एक द्वार घेरे रामा हिम-कोतवलवा से, तीन द्वार सिंधु घहरावे रे…
प्रेम पत्र लिख पाऊँ मैं - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
प्रेम गीत साजन मैं गाऊँ, अन्तर्भावों में घुल जाऊँ मैं, ऋतुराज गमन सावन आया, प्रेमपत्र वियोग लिख पाऊँ मैं। मुस्कान अधर…
कबीर - कविता - राजीव कुमार
बनारस की सड़कों से, मगहर की गलियों तक, खोजता है कबीर, एक बुरा आदमी, अपनी तरह! जो एतराज कर सके, मुल्…
फिर मनुआ मरने से क्या घबराना - कविता - डॉ. ओमप्रकाश दुबे
तुम्हें पता है! तुम कहां से आए हो, तुम्हें पता है! तुम कहां जाओगे माना तुम अनुमान लंबे चौड़े लगाओगे यहां तक भी, तुम आध्यात्मिक गु…
बचपन का छोटा सा शेखर - कविता - शेखर कुमार रंजन
बचपन का छोटा सा शेखर, कल तक कहानियां पढ़ता था कभी सोचा नहीं था कि कभी, खुद की कहानियां गढ़ेगा। बचपन का छोटा सा शेखर, कल तक कवित…
मुसाफिर - ग़ज़ल - दिलशेर "दिल"
रात के मुसाफ़िर हैं, सुब्हा चले जायेंगे। प्यार से पुकारोगे, फिर से लौट आएंगे।। सुब्हा फिर समन्दर है, कश्तियाँ है, पानी है। रात…
हुई अमर ये प्रेम कहानी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
आज श्याम सँग झूला झूलें, प्यारी राधा रानी। सावन पर भी यौवन छाया, झमझम बरसे पानी । हरा भरा हरियाला मौसम, भीगा भीगा तन मन है । र…
स्वागत नव पावस मधुश्रावण - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
खुशनुमा मास आया सावन मधुर मधुर प्रवहमान पवन, सुन्दर निर्मल नीलाभ गगन, झूला झूल रही मधुशाल बनी, एकांग वसन मदमाती कली, लट केश …
भ्रष्टाचार को और बढ़ावा नहीं - कविता - मधुस्मिता सेनापति
भ्रष्टाचार अनीति की धार है, रिश्वत इसके आधार है, भ्रष्ट व्यक्तियों का यह पलटवार है........!! भ्रष्टाचार जो अनीति का है अंग एक,…
प्रभु कैसा राह बनाया - गीत - शेखर कुमार रंजन
प्रभु ये तूने कैसा राह बनाया, राहो में तूने क्यों कांटा बिछाया। जो दिया दर्द उसे सर पे सजाया, प्यारी सी फूलों को पैरों से लगाया …
हे कृष्णा सांवरे - कविता - चीनू गिरि
प्यारे तू सब जानता है , प्यारे तू सब देखता है ! तूने तकदीर लिखी है, मेरी इसमें क्या खता है ! मैने तो वो ही किया है , तू जो मेरे…
कोई खास नहीं है - कविता - सतीश श्रीवास्तव
जिस दिन से तकलीफ बढ़ी है कोई पास नहीं है, सारा जग है बेगाना सा कोई खास नहीं है। हमने साथ निभाया तेरा छोड़ा साथ भी कभी नहीं, भ्रम …
कमियाँ - कविता - चन्दन कुमार अभी
कितनी कमियाँ निकालोगे मुझमें , मैं भी तो एक इंसान हूँ। करके यकीन आजमा के देख लो , मैं तेरे लिए ही कुर्बान हूँ। कितनी कमियाँ निकल…
तेरा कोई ऐतबार नहीं - ग़ज़ल - दिलशेर "दिल"
ज़िन्दगी सच है तेरा कोई ऐतबार नहीं। तेरी चाहत में मगर कौन गिरफ़्तार नहीं। सरफ़रोशी का वो जज़्बा है कहाँ अब यारो, जान देने को वतन पे …
ये जो मेरा वतन है - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ये जो मेरा वतन है, ये जान से प्यारा वतन है। आज अपनी ही जमी है , आज अपना ही गगन है। अपनी हवा मे साँस ले , अपनी हवा मे गुनगुना…
जीवन संघर्ष - कविता - मधुस्मिता सेनापति
जिंदगी में दर्द होता है लेकिन खुद को टूटने ना दो कितना मुश्किल क्यों ना आ जाए मन को कभी बिखरने ना दो.....!! संघर्ष के पथ में य…
हरी भरी सुष्मित प्रकृति - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
हरी भरी सुष्मित प्रकृति, है जीवन आधार। करें सुरक्षित हम उसे, खिले खुशी संसार।।१।। हरीतिमा छाये धरा, स्वच्छ मिले…
अपनो की परवाह करे - लेख - शेखर कुमार रंजन
हमें वैसी आदतों से खुद को चुन-चुनकर कर अलग कर देनी चाहिए जो नकारात्मक हो और बुराई से खुद को जोड़ती हो, मैं यह इसलिए कह रहा हूँ क्यों…
शिव - कविता - अशोक योगी "शास्त्री"
मै गिर कंद्रा में रहने वाला बंधन मुझे स्वीकार नहीं मै भष्म भभूत लगाने वाला चंदन मुझे स्वीकार नहीं। रूद्र भूत गणादि परिज…
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