अपनो की परवाह करे - लेख - शेखर कुमार रंजन

हमें वैसी आदतों से खुद को चुन-चुनकर कर अलग कर देनी चाहिए जो नकारात्मक हो और बुराई से खुद को जोड़ती हो, मैं यह इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि नकारात्मक आदतें आपकी जीवन को तबाह कर सकती हैं। हमें नकारात्मक आदतों को त्याग कर सकारात्मक आदतों को ग्रहण कर लेनी चाहिए क्योंकि यदि सकारात्मक आदतों की लत आपको लग गई तो फिर आपको शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता है।

हमें उन तमाम बुरी आदतों को छोड़ देनी चाहिए जो हमारे सफलता की राह में बाधाएं उत्पन्न करती हो। हमें अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए कुछ नियम बनाने की आवश्यकता होती हैं जो हमें अपनी मंजिल तक ले जाने में तेजी से सहायता प्रदान करती है। अब मै बहुत सारी कड़वी बातें करूँगा जो हो सकता है, कि आपको सुनने में शायद अच्छा नहीं भी लगे। किन्तु मैं खुद को सच बोलने से नहीं रोक पा रहा हूँ। मैं बस आपसे यह पूंछना चाहता हूँ कि आपलोग कैसे यह कर सकते है? अब आप अंजान की भाँति कहेंग कि क्या किया है मैंने? तो मै पूछता हूँ कि आप वैसे लोगों की परवाह करना क्यों छोड़ देते हैं जिन्होंने सदा आपकी परवाह किया है। बिना कुछ भूले उन लोगों की परवाह कीजिए जिन्होंने आपकी परवाह की है। जिन्होंने आपकी जीवन को सुसज्जित करने के ख़ातिर खुद की जीवन के साथ समझौते किये और अपनी सपनों को अधूरे छोड़ आपकी सपनों को पूरा करने में कभी न चुकाने वाली सहायता की है।

आजकल के बच्चे तनिक-तनिक बात पर  कहते फिरते हैं, कि यह जिंदगी मेरी है और मुझे अपनी हर फैसलों का चुनाव करने का हक हैं। मैं अपनी जीवन कैसे? भी बिताऊँ इसमें लोग मुझे मना क्यों करते हैं? लोग मुझे अकेला क्यों नहीं छोड़ देते? मैं तो किसी को कुछ नहीं कहता हूँ।  मै अपना जीवन जी रहा हूँ मुझसे लोग मतलब क्यों? रखते हैं। अपने काम से मतलब क्यों नहीं रखते हैं? इसी तरह की वाणियों का प्रयोग आजकल के युवाओं के द्वारा  बड़े पैमानों पर किया जा रहा है मुझे तकलीफ होती है ऎसे अभागों से जो बिना किसी की परवाह के यह कहते है कि मुझे किसी से कोई मतलब नहीं है। मैं अपनी जिंदगी बिना किसी रोक टोक के अपने तरीके से जिऊँगा मुझे हँसी भी आती हैं और साथ ही उसकी हालातों पर तरस भी आती हैं किन्तु मै या आप क्या कर सकते है? यदि किसी अभागे ने अपनी जीवन खुद के हाथों ही नष्ट करने को ठान लिया हो। आखिरकार यह जिंदगी आपकी हो कैसे सकती हैं? आपके पैदा होने में भी आपका कोई योगदान नहीं था। आपको बड़ा करने, आपको अच्छी शिक्षा देने, एवं आपको हर सुविधाएं मुहैया कराने में आपकी परिवार ने कोई कसर नहीं छोड़ी वे दिन रात अथक परिश्रम करके आपके सपनों को साकार करवानें में जुटे रहे और तब जाकर आपकी सपनें पूरे हुए, वे हर वक़्त हर पल आपकी परवाह करते आये और अब जाकर थोड़ी आपकी बाजूओं में दम क्या हो गया आप तो मेरी जिंदगी कहने लगे।

आप तो यह भी भूल गये की आपकी माता-पिता ने जो सुख खुद भी नहीं देखे कभी, वो सुख भी आपको मुहैया कराए। भले ही वे अच्छी प्रकार पढ़े लिखे नहीं किन्तु फिर भी तो आपको कोचिंग और स्कूल का माहौल दिया। आपकी इच्छा के अनुरूप ही उत्सवों पर कपड़े भी खरीदे साथ ही आपकी पसंद से ही घर में व्यंजन भी बनती रही और ये सब करते हुए उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि मै अपने बच्चों की सुविधओं में कटौती कर अपनी शौक़ पूरा करू, तब तो उन्होंने यह नहीं कहा कि मेरी जिंदगी है अपनी तरह से जिऊँगा। आप ही बताइए उन्होंने कभी यह सोचा कि भविष्य में आप उनके सपनों पर खड़े उतरेंगे की नहीं। आपको तो पता भी नहीं चलता था जब आपकी मम्मी आपकी गंदे कपड़ो को रात-रात भर जागकर बदलती रहती थी। आप तो भूल ही गये होंगे न जब आप खेलने के क्रम में खाना नहीं खाते थे तो आपके पीछे-पीछे भागकर वो खिलाती थी। अरे अब याद रखने से भी क्या? अब तो आप खुद से खाना खा सकते हो अब आपको किसकी जरूरत भी महसूस नहीं होती हैं। अब तो आप हर कार्य खुद से कर सकते हो, तो फिर आपको किसी की परवाह करने की क्या? पड़ी है। आपकी थोड़ी सी चोट पर वो रो-रोकर अपनी आंखों को फुला लेती थी किन्तु अब उन बातों से आपको क्या? वह तो तब की बात थी तब आप भी तो सोचते ही थे कि हमें अपने माता पिता के दुखों को खत्म करना है उनके उम्मीदों पर खड़ा उतरना है लेकिन वो तो तब की बात थी आपने बचपन में यह सोचा यह बड़ी बात नहीं है क्या? भले उसे पूरा करो या फिर नहीं तब की बात कुछ और थी क्योंकि तब तुम्हारे हाथों में दम नहीं थी।

अब तो तुम अपनी बाजुओं से कोई भी कथनी को सत्य करने की क्षमता रखते हो, तो फिर अब क्या? जरूरत है बचपन की उन वादाओं से जो खुद से करते थे। हा सही कर दो इस कथन को जो किसी बड़े  हस्ती ने कहा है की परिवर्तन ही जीवन है, हा तब से अब तक तो ना जाने कितनी ही बार परिवर्तन भी तो हो गये होंगे।  पहले आपके पापा कार्य खत्म करके आते थे, तो घर पर आपको पीठ पर लादकर घूमाते थे। मानते हैं कि उन्होंने आपकी हर फरमाइशों को अपनी क्षमता अनुसार पूरा किया किन्तु इसका यह मतलब थोड़ी न है कि आप भी उनके इच्छाओं को पूरा करों।  वे बचपन से लेकर अब तक आपको खुशियां देते आ रहे हैं तो आप भी उन्हें खुशी दो यह भी तो कोई जरूरी नहीं और ऐसे भी तो नहीं की यह आपका कर्तव्य बनता है। आजकल के बच्चे पढ़े-लिखे समझदार है उन्हें पता हैं, कि ये सब तो उनके अभिभावकों का फर्ज था जिसे वह पूरा किये और इसके लिए वह भी अपना फर्ज निभाये ये जरूरी तो नहीं। पहले लोग अनपढ़ गवार थे जो इन बातों में विश्वास रखते थे, रिश्तों की अहमियत देते थे किंतु अब तो लोग पढ़ लिख लिए है समझदार हैं तो फिर ये सब कोई मायने थोड़ी न रखती हैं।

आप जिस प्रकार से अपनी परिवार के तकलीफ़ों को नजरअंदाज करते आ रहे हो उसी प्रकार आपकी परिवार ने सुखों में कटौती की ताकि आप पढ़ सको, तो क्या?  यह जरूरी थोड़ी न है,  कि आप उनके उन सुखों को लौटाओ। आपको बिलकुल ही उन सारी बातों को भूल जानी चाहिए,  कि किस प्रकार से ना जाने कितने जतन किये है आपके परिवार ने आपके लिए। आप बिना मतलब के झुंझलाते थे और वे बर्दाश्त करते थे। आप ऊँचे स्वर में चिल्लाते थे और वो भी वे बर्दाश्त किये। उस समय भी प्यार से ही कहते थे कि बेटा सो जाओ काफी रात हो गया टी.वी बंद कर दो सुबह जगना भी तो है वरना तबियत बिगड़ जाएगी। तुम अपने दोस्तों के साथ बिना बताए ही चले जाते थे और नहीं परवाह करते थे परिवार की तो अब क्या? भले तुमने डर के कारण ही नहीं बताई हो कोई बात नहीं। किन्तु अब तो तुम बड़े हो गए। अब भी तुम बड़ो का आदर करोगे यह तुम्हारे शान के खिलाफ नही होगा क्या? अरे तुम्हारा जीवन है तुम अपने तरीको से जी सकते हो। क्या जरूरत है? मम्मी-पापा की बातों को मानने की अरे वो तो बचपन की बात होती थी कि आपकी गलतियों को छुपाने के लिए आपकी मम्मी आपके पापा से डांट सुनती थी। किन्तु इससे आपको क्या फर्क पड़ता है। अरे इन बातों पर ध्यान देने से क्या फायदा ये सब आप जैसे पढ़े- लिखे लोगों के लिए बेतुकी है। अरे इस तरह की बातों पर ध्यान देने से कोई फायदा थोड़ी न है, यह कोई प्रतियोगिता के परीक्षाओं में पूछ देगा क्या? मेरा मानना है बिलकुल भी नहीं और नहीं इससे नौकरियां लगने वाली हैं, तो फिर सब फालतू है। अरे वो बात अलग थी कि पापा के पॉकेट से पैसा निकाल कर मम्मी तुम्हें दे दिया करती थी किन्तु इसका यह मतलब तो नहीं कि आप उनका परवाह करो। हा मानते हैं कि आपकी होंठो पर मुस्कान देखने के लिए आपकी परिवार सदा चाहती रही हैं। तो क्या? आप थोड़ी न कहते हो ऐसा करने को वे लोग तो अपनी इच्छा से ऎसे करते हैं। वे तो पुराने ख्यालात के अनपढ़-गवार है वे आपकी चिन्ता करते हैं तो करने दीजिए आप थोड़ी न उनके जैसे हो आप तो पढ़े-लिखे हो आप तो जानते हो जिंदगी क्या होता है और इसलिए कहते भी रहते हो कि मेरी जीवन मैं अपनी तरीके से जिऊँगा। हा ये अलग बात है कि बचपन से ही आपकी परिवार एक प्रतिकूल हालातों से आपके लिए झुझते रहे और अब क्या?  अब तो आप बड़े हो गये। अब क्या? अब ये सब बातें थोड़ी न मायने रखती हैं। अब फैसला आपके हाथों में है आप किसी की परवाह करते हो या नहीं पर अपनी जमीर से पूछना की किसी की परवाह करनी चाहिए कि नहीं करनी चाहिए।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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