दाँत कोरोना के मिलके तोड़ दिये हैं
घर मे रहे फिर भी तुझे हरा हमने दिया
बाहर खड़े खड़े तूने कर क्या लिया
हम भी कही आना जाना छोड़ दिये हैं
दाँत कोरोना के मिलके तोड़ दिए हैं
तू इठला रहा था जहर हाथों में लिए
दोस्त भी सभी देंगे बद्दुआएं तेरे लिए
वो मित्र मित्र से मिलना छोड़ दिये है
दाँत कोरोना के मिलके तोड़ दिए हैं
मजदूर के नयनों में नीर तूने दिया है
सुख चैन आदमी का तूने छीन लिया है
मुन्ने, मुन्नी अपनी गुल्लक फोड़ दिए हैं
दाँत कोरोना के मिलके तोड़ दिए हैं
पिंजरे में बंद रहके कितना दर्द सहा है
पूरा विश्व आज तुझे लानत भेज रहा है
तेरे जैसे कायरों को हम मरोड़ दिये हैं
दाँत कोरोना के मिलके तोड़ दिए हैं
कवि प्रशांत कौरव - गाडरवारा (मध्यप्रदेश)