प्यार से पुकारोगे, फिर से लौट आएंगे।।
सुब्हा फिर समन्दर है, कश्तियाँ है, पानी है।
रात भर जगाया तो, नाव क्या चलाएंगे।।
साथ छोड़ जायें जब, अपने और पराये भी,
कोई जब न होगा तब, काम हम ही आयेंगे।।
उनकी चाहतों में हम इस तरह से डूबे हैं,
होश ही नहीं है जब, हाल क्या सुनाएंगे।।
कितनी अब तसल्ली है, कितना है सुकूने दिल,
जब से ये ख़बर आई, सुब्हा को वो आयेंगे।।
जान भी लुटा दें हम, उनके इक इशारे पर,
प्यार इतना करते हैं, क्या वो मान जायेंगे।
आज चाहे ठुकरा दें, तोड़ दें हमारा दिल,
एक दिन मगर हम ही, डोली ले के जायेंगे।
घोड़ियों पे सज-धज के हम न आयेंगे हरगिज़,
हम तो शहर वाले हैं, गाड़ियों से आयेंगे।
उनको जब से देखा है, होश में नहीं है दिल'
उनकी गहरी आँखों में हम भी डूब जायेंगे।
दिलशेर "दिल" - दतिया (मध्यप्रदेश)