भ्रष्टाचार को और बढ़ावा नहीं - कविता - मधुस्मिता सेनापति

भ्रष्टाचार अनीति की धार है,
रिश्वत इसके आधार है,
भ्रष्ट व्यक्तियों का यह पलटवार है........!!

भ्रष्टाचार जो अनीति का है अंग एक,
हम इसके खिलाफ लड़ेंगे जंग अनेक,
स्वस्थ समाज हम बनायेंगे काम करेंगे नेक........!!

पैसा तो देता है यह सरकार, लालच तो है एक चाहत,
भ्रष्टाचार के सिलसिला बनी है इस सतत,
जिससे गरीबों को कभी नहीं मिल पाती राहत.......!!

शराफत के जमाने अब है कहां,
यह प्रेम भरी स्वभाव है पर इसमें अच्छाई कहां,
चाहत पूरी होने की है गारंटी पर इसमें जिंदगी कहां?......!!

भ्रष्टाचार एक पाप है,
इसे हम नकार नहीं सकते ,
लेकिन, भ्रष्टाचार के खिलाफ हम लड़ सकते हैं......!!

भ्रष्टाचार अमानवता का भार है,
जिससे हम त्यागना चाहिए,
भ्रष्टाचार मुक्त समाज हमें ही गठन करनी चाहिए......!!

भ्रष्टाचार ईमानदारी की है विपरीत,
इसमें केवल करना पड़ता है प्रायश्चित,
भ्रष्टाचार को हटाकर हम 
समाज कल्याण करेंगे स्थापित........!!


मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos