तेरा कोई ऐतबार नहीं - ग़ज़ल - दिलशेर "दिल"

ज़िन्दगी सच है तेरा कोई ऐतबार नहीं।
तेरी चाहत में मगर कौन गिरफ़्तार नहीं।

सरफ़रोशी का वो जज़्बा है कहाँ अब यारो,
जान देने को वतन पे कोई तैयार नहीं।

एक बेजान सी मूरत ही समझिये उसको,
जज़्ब-ए-इश्क़ से इंसान जो सरशार नहीं।

अज़्मे मोहकम लिए लड़ता हूँ हर एक मुश्किल से, 
गर्दिशे -वक़्त से डरना मेरा किरदार नहीं।

मेरे अफ़कारो ख़यालात तो अनमोल हैं 'दिल',
उनकी कीमत किसी ज़रदार का दीनार नहीं।

दिलशेर "दिल" - दतिया (मध्यप्रदेश)

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