कोई खास नहीं है - कविता - सतीश श्रीवास्तव

जिस दिन से तकलीफ बढ़ी है कोई पास नहीं है,
सारा जग है बेगाना सा कोई खास नहीं है।
हमने साथ निभाया तेरा छोड़ा साथ भी कभी नहीं,
भ्रम था साथ निभाएगा पर साथ निभाया कभी नहीं।
संबंधों की परिभाषाएं  इस जीवन में रास नहीं हैं,
सारा जग है बेगाना सा कोई खास नहीं है।
जब जब संकट बढ़े तो हमने तेरी ओर निहारा है,
तूं ही बता दे तेरे अलावा किसका और सहारा है।
आकर दशा हमारी देखे क्या इतना अवकाश नहीं है,
सारा जग है बेगाना सा कोई खास नहीं है।
जिस आसन पर तूं बैठा है उसको हमने चुना बुना ,
कितनी ही फरियादें भेजीं लेकिन तूने नहीं सुना।
तकलीफें कैसी होती हैं क्या बिल्कुल अहसास नहीं है,
सारा जग है बेगाना सा कोई खास नहीं है।
तू भूला पर हम न भूले दिवस दिवस के मेले,
कौन सुनेगा किसे सुनाएं झेले बहुत झमेले।
जीवन तो है पहले जैसी लेकिन सांस नहीं है,
सारा जग है बेगाना सा कोई खास नहीं है।
अंतिम सांस कहां कब आए कौन समझ पाया है,
वही हसाए वही रुलाए उसकी ही माया है।
चमक नहीं है अब आंखों में पहले सा प्रकाश नहीं है,
सारा जग है बेगाना सा कोई खास नहीं है।

सतीश श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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