संदेश
अडिग हौसला - कविता - सुनील माहेश्वरी
थोड़ा सा धैर्य रखा यारो, और थोड़ा सा विश्वास, माना परिस्थिति थी कठिन पर मन में थी गहरी आस। वो आस मैंने टूटने नहीं दी, ना ही ख़ुद को कमज़…
प्यार के क़िस्से - कविता - धीरेन्द्र पांचाल
मिले थे कल जो तुमसे हम, उसी बाज़ार के क़िस्से। लिखूँगा आज काग़ज़ पर, हमारे प्यार के क़िस्से। पलटकर देखता था मैं, इरादे नेक थे अपने। थोड़ी शै…
आने वाला कल अच्छा है - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
मनसा, वाचा, कर्मणा से, सरसब्ज़ हैं आप, तो आने वाला कल अच्छा है। मन से परोपकार करना, मन से किसी दिल को सांत्वना देना, यही उत्तम है और सब…
व्यथित मन - कविता - प्रवीन "पथिक"
हृदय और भी हो जाता व्यथित! जब सर्वस्व हारकर, जाता तुम्हारे समीप; कर देती कंटकाकीर्ण, उर को मेरे अपने शब्दभेदी बाणों से। प्रवीन "प…
घरेलू हिंसा और दहेज एक्ट - कविता - प्रीति बौद्ध
क्या हिंसा की सोच सिर्फ़ पुरुषों में होती है, नहीं होती महिला में। कहीं-कहीं घरेलू हिंसा औरत ही करती है पति के घर में। आपको नहीं लगता ह…
धूमिल की याद - कविता - विनय "विनम्र"
यह कविता कवि 'धूमिल जी' (सुदामा पाण्डेय जी) को सादर समर्पित है। समाज की सच्चाईयों से शासन को ललकारने वाले शब्द रथि। जौनपुर जिल…
धरती अम्बर - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
धरती अम्बर अरुणाभ मुदित, श्यामल हरितिम नीलाभ प्रकृति, मुस्कान धरा नित नवल प्रगति, निशि चन्द्र प्रभा जग शान्ति खिले। उल्लास हृदय सम सूर…
फ़ितरत - ग़ज़ल - श्रवण निर्वाण
अरकान : फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ा तक़ती : 22 22 22 22 22 2 सबका हो जाऊँ यह दिल में हसरत है, फ़िज़ा में यहाँ क्यों इतनी नफ़रत है। बन…
ठंडक के नज़ारे - कविता - शिवम् यादव "हरफनमौला"
धूप औ धुँध की चल रही थी कटी। धूप भी न हटी, धुँध भी न छटी।। अपना रुतबा दिखाने में सब व्यस्त थे, कुश्ती दोनों की लगभग बराबर कटी।। वो भी …
जीवन-राग - कविता - विनय विश्वा
जीवन के कुछ सच जो ना अपना है सब एक सपना है। आना और जाना जीवन के सुख-दुःख खेल-खिलौना सब फूल यहाँ खिले मुरझाए और धम से आकर धरती को चूमें…
अब पहले जैसा कहाँ बसंत - गीत - रमाकांत सोनी
मन में उमंग उठती कहाँ अब, बहती कहाँ भावनाएँ अनंत। प्रेम भरी पुरवाई खो गई, अब पहले जैसा कहाँ बसंत।। रिश्तो में कड़वाहट भर गई, पीपल भी …
हमसफ़र - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
भीड़ भरी दुनिया में, कई आते और जाते हैं। मिलकर बिछड़ जाते हैं, ज़िन्दगी के सफ़र में हमसफर ही साथ निभाते हैं। दिल-ओ-जाँ में बसते, सुख-दुःख…
इक ग़ज़ल संदली हो गई है - ग़ज़ल - दिलशेर "दिल"
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन तक़ती : 2122 122 122 उसकी अब रहबरी हो गई है। ज़ीस्त आसान सी हो गई है। हर तरफ़ रोशनी हो गई है, शायरी जब मिरि …
बसंत एक नज़रिए अनेक - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
बसंत का नाम आते ही ज़ेहन में उभरते हैं बसन्त ऋतु के कई चेहरे कई रंग, बस निर्भर करता है लोगों का अलग अलग नज़रिए से मधुमास को आत्मसात करना…
बढ़ेगा आगे भारत (भाग २) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२) देवासुर संग्राम, सदा ही होता आया। निकला जो परिणाम, उसे युग भूल न पाया। किए प्रबल संग्राम, परशुराम-हैहय मिलकर। दशरथनंदन राम, लड़े रा…
शक क्यूँ किया करते हो - कविता - सुनील माहेश्वरी
उस पावन देह पर तुम शक क्यूँ किया करते हो। आधुनिकता के इस युग में भी तुम बख़्श क्यूँ नही दिया करते हो। है नहीं लाचार वो, फिर क्यूँ प्र…
जय जवान जय किसान - कविता - रुखसाना सुल्तान
अँधेरों में उजाले की बात करता है किसान, रात दिन मेहनत करके उगाता है धान। किसान है हमारे अन्नदाता, जवान है देश के विधाता। उनकी दिल से क…
आ गया है बसंत - कविता - जितेन्द्र कुमार
प्रकृति कर ली है श्रृंगार, सर्वत्र छा गया है बहार, अवनि है बन-ठन तैयार, कर रहा रूह को इज़हार, ठिठुरन का हो गया अंत, आ गया है बसंत... मल…
एक क़दम पहल की ओर - कविता - संजय राजभर "समित"
देश के बुद्धिजीवियों कंबल रज़ाई छोड़ो आगे आओ बस एक क़दम पहल की ओर। अपने-अपने बच्चों को तड़के सुबह जगा दो किताब हाथ में थमा दो। आप …
वो एक पागल सी लड़की - कविता - अमित अग्रवाल
कभी बचपना उसका तो कभी समझदारी दिखती है, कभी मासूमियत बेहिसाब तो कभी गंभीरता झलकती है, कभी मान लेती सारी बातें तो कभी करती है मन की, कु…
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