इक ग़ज़ल संदली हो गई है - ग़ज़ल - दिलशेर "दिल"

अरकान : फ़ाइलातुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 2122 122 122

उसकी अब रहबरी हो गई है।
ज़ीस्त आसान सी हो गई है।

हर तरफ़ रोशनी हो गई है,
शायरी जब मिरि हो गई है।

अब अकेले नहीं चल सकूँगा,
रहनुमा तीरगी हो गई है।

दास्ताँ हिज़्र की जो रकम की,
अब वही शाइरी हो गई है।

दिल में अरमान है बस उसी का, 
जो मेरी ज़िंदगी हो गई है।

देख कर भी नहीं देखती वो,
कितनी ज़ालिम खुशी हो गई है।

ख़ून दिल का जिगर का जलाया,
और फिर शायरी हो गई है।

वो मेरे ज़हनों दिल के अलावा,
रूह की रोशनी हो गई है।

मतला ता मक़्ता अशआर मिल कर,
इक ग़ज़ल संदली हो गई है।

चाह कर भी न "दिल" को मिला वो,
इतनी क़िस्मत बुरी हो गई है।

दिलशेर "दिल" - दतिया (मध्य प्रदेश)

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