रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)
अब पहले जैसा कहाँ बसंत - गीत - रमाकांत सोनी
शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2021
मन में उमंग उठती कहाँ अब,
बहती कहाँ भावनाएँ अनंत।
प्रेम भरी पुरवाई खो गई,
अब पहले जैसा कहाँ बसंत।।
रिश्तो में कड़वाहट भर गई,
पीपल भी दिखते बेबस से।
मधुमास मतवाला अब कहाँ,
मदमस्त करता सबको रस से।।
वह अल्हड़पन तरुणाई का,
गा रहा हो बैठा कोई पंत।
बहती नदियों का कल कल स्वर,
अब पहले जैसा कहाँ बसंत।।
वह खुशी उल्लास हृदय की,
होठों पर आँखों मे रहती।
हर हाव-भाव हर बोली में,
वासंती बयार मधुर बहती।।
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