जय जवान जय किसान - कविता - रुखसाना सुल्तान

अँधेरों में उजाले की बात करता है किसान,
रात दिन मेहनत करके उगाता है धान।
किसान है हमारे अन्नदाता,
जवान है देश के विधाता।
उनकी दिल से कद्र करो,
उनकी हर मुमकिन मदद करो।
किसान मेहनत करके उगाते है अन्न,
तब जाकर मिलता है मन दो मन।
“जय जवान जय किसान” का है नारा,
फिर क्यों दोनों ने एक दूसरे को मारा।
उनकी आँखों में ना आँसू आने पाए,
फिर देश का गरीब क्या खाए।
जवान है देश के रखवाले,
किसान है पेट पालने वाले।
फिर आपस में तकरार क्यों,
मिलकर एक रास्ता निकालते नहीं क्यों।
हर वक़्त देकर जाता है नया तजुर्बा,
नज़र अपनी-अपनी है सीखा या गवाया।
हर हित से पहले है देश हित,
वरना हो जाएगा बड़ा अनहित।
हर रीत से पहले है मोहब्बत की रीत,
न दिया ध्यान तो बिगड़ जाएगी दुनिया की रीत।
जिसको लेकर रोएँगी नस्लें,
बेकार हो जाएगी सारी फ़सलें।
मनमानी से चलता नहीं देश,
हालात पर पकड़ रखकर बढेगा देश।
किसानों की यह भीड़,
सड़क पर लगी है कील।
आगे जाए कैसे, पीछे आए कैसे,
सब की है अपनी-अपनी मानसिकता।
नये ज़माने ने दिखाया क्या क्या,
तरक्की पाने के लिए सिखाया क्या क्या।
ज़िंदगी शॉर्टकट से चलती नहीं,
हर चीज की गहराई समझो, नासमझी चलती नहीं।
क़ामयाबी होगी तेरी मुट्ठी में,
सब कुछ मिलेगा देश की मिट्टी में।
ए वतन तेरी मोहब्बत की है मेहरबानियाँ,
जो मिलती हैं सबको क़ामयाबियाँ।
क़ामयाबी के नशे में यह ना भूले हम,
यह देश है हमारा इस देश के हैं हम।

रुखसाना सुल्तान - काशीपुर (उत्तराखंड)

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