ठंडक के नज़ारे - कविता - शिवम् यादव "हरफनमौला"

धूप औ धुँध की चल रही थी कटी।
धूप भी न हटी, धुँध भी न छटी।।
अपना रुतबा दिखाने में सब व्यस्त थे,
कुश्ती दोनों की लगभग बराबर कटी।।

वो भी उड़ती रही, वो भी उड़ती रही,
दोनों जज़्बातों के संग लड़ती रही।
अंत में सब नतीज़ा हुआ किर्किटी,
न ही उनकी कटी न ही उनकी कटी।
धूप भी न हटी, धुँध भी न छटी।।

एक दूजे से इज़हार करते रहे,
एक तरफ़ फूल ए लाही निखरते रहे,
धूप और धुँध यूँ ही झगड़ते रहे,
और वसंत भी यूँ सजते संवरते रहे।
लक्ष्य पर थे अडिग दोनों के दोनों ही,
न ही उनकी सटी न ही उनकी सटी।
धूप भी न हटी, धुँध भी न छटी।।

शिवम् यादव "हरफनमौला" - लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos