वो एक पागल सी लड़की - कविता - अमित अग्रवाल

कभी बचपना उसका तो
कभी समझदारी दिखती है,
कभी मासूमियत बेहिसाब तो
कभी गंभीरता झलकती है,
कभी मान लेती सारी बातें तो
कभी करती है मन की,
कुछ ऐसी है वो एक पागल सी लड़की।

कभी अकेले में मुस्कुराती है तो
कभी सब भूल खो जाती है,
कभी छोटी बात पर बेचैन हो जाती है तो
कभी ख़ुद से हक़ जताती है,
सबकी ज़रूरतों का ख़्याल रखती है
भूल के परवाह ख़ुद की,
कुछ ऐसी है वो एक पागल सी लडक़ी।

मिलकर जिससे अपनापन सा लगता है,
तो दूर जिससे एक पल भी अखरता है,
सबकी खुशी में खुश हो जाती है तो
सबके दुःख चेहरे से पढ़ जाती है,
है थोड़ी सी नादान पर बातें करती
जैसे नानी हो सबकी,
कुछ ऐसी है वो एक पागल सी लड़की।

कभी खुशमिज़ाज बन पूरे घर मे चहकती है तो
कभी शान्त सागर सी अपने मे महकती है,
कभी कुछ पाने की जिद करती तो
कभी सारी ख़्वाहिशें बस एक पर जिसकी सिमटती है,
सबकी चहेती सबकी लाडली है,
पर रखती है सम्मान अपने घर दुनिया की,
कुछ ऐसी है वो पागल सी लड़की।

अमित अग्रवाल - जयपुर (राजस्थान)

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