बढ़ेगा आगे भारत (भाग २) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(२)
देवासुर संग्राम, सदा ही होता आया।
निकला जो परिणाम, उसे युग भूल न पाया।

किए प्रबल संग्राम, परशुराम-हैहय मिलकर।
दशरथनंदन राम, लड़े रावण से जमकर।।

युद्ध हुआ दसराज्य, हमें ऋग्वेद बताए।
कौरव-पाण्डव युद्ध, आज तक भूल न पाए।

ठीक इसी के बाद, हुआ देश अपना खंडित।
देश हुआ बेहाल, मगर थी महिमा मंडित।।

सम्राट चन्द्रगुप्त, नया इतिहास रचाए।
धनानंद को मार, मौर्य ध्वज थे लहराए।

करके युद्ध अशोक, हुए शोकाकुल भारी।
भारत में संग्राम, रहा हर युग में जारी।

संस्कृति के सह धर्म, सदा ही हुआ प्रभावित।
भारत का इतिहास, यही करता है इंगित।

फारस अरु यूनान, रहा भारत पर हावी।
भू अफगानिस्तान, हुआ यूँ घोर प्रभावी।

भारत पे आक्रमण, किए थे सतत सिकंदर।
रहा न चुप ईरान, नज़र थी भारत भू पर।

अरब-तुर्क तत्काल, यहीं पे सेंके रोटी।
चली सियासी चाल, भूमि भारत पर खोटी।

बिन कासिम अधिकार, सिंध प्रांत में जमाया।
क्रूरता अत्याचार, पाप-संताप बढ़ाया।

झाँको तनिक अतीत, पुरानी कथा-कहानी।
राग-द्वेष की रीत, लगेगी फिर बेमानी।

हमसब भारत देश, कदापि नहीं तोड़ेंगे।
हम सदैव थे एक, सदा ही एक रहेंगे।

भारत अपना देश, न आने देंगे आफ़त।
मन में है विश्वास, बढ़ेगा आगे भारत।।

डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos