फ़ितरत - ग़ज़ल - श्रवण निर्वाण

अरकान : फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ा
तक़ती : 22 22 22 22 22 2

सबका हो जाऊँ यह दिल में हसरत है,
फ़िज़ा में यहाँ क्यों इतनी नफ़रत है।

बनाने वाले मालिक ने कमी नही की,
कौन जाने, किस शख़्स की शरारत है।

दूर हैं, कैसे करूँ उनसे मैं मन की बात,
कटे कटे रहते हैं उनकी यह फ़ितरत है।

इस शहर में इंसानों के भी कई मकाँ है
यहीं बस्ती में हैं यह उनकी शराफ़त है।

'निर्वाण' यहाँ किनारा कर लेते हैं लोग
कोई समझे, ना समझे, यह हक़ीक़त है।

श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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