प्यार के क़िस्से - कविता - धीरेन्द्र पांचाल

मिले थे कल जो तुमसे हम, उसी बाज़ार के क़िस्से।
लिखूँगा आज काग़ज़ पर, हमारे प्यार के क़िस्से।

पलटकर देखता था मैं,
इरादे नेक थे अपने।
थोड़ी शैतानियाँ भी थी,
थोड़े एहसास थे अपने।
तलाशा अंजुमन में भी, तेरे दीदार के क़िस्से।
लिखूँगा आज काग़ज़ पर, हमारे प्यार के क़िस्से।

हसरतें मिटती कहाँ थीं,
मामला तब दिल का था।
बोतलें टिकती कहाँ थीं,
कश्मकश महफ़िल में था।
कह रहा था नाव से मझधार के क़िस्से।
लिखूँगा आज काग़ज़ पर, हमारे प्यार के क़िस्से।

तड़पना लाज़िमी था पर,
मुझे मालूम था इतना।
सफ़र काँटों का भी होगा,
गुलाबों का जतन जितना।
तबियत से लिखूँगा मैं तेरे रुख़सार के क़िस्से।
लिखूँगा आज काग़ज़ पर, हमारे प्यार के क़िस्से।

धीरेन्द्र पांचाल - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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