व्यथित मन - कविता - प्रवीन "पथिक"

हृदय और भी हो जाता व्यथित!
जब सर्वस्व हारकर,
जाता तुम्हारे समीप;
कर देती कंटकाकीर्ण,
उर को मेरे
अपने शब्दभेदी बाणों से।

प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)

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