धूमिल की याद - कविता - विनय "विनम्र"

यह कविता कवि 'धूमिल जी' (सुदामा पाण्डेय जी) को सादर समर्पित है। समाज की सच्चाईयों से शासन को ललकारने वाले शब्द रथि। जौनपुर जिले के महान कवि जो अल्पायु 39 वर्ष की आयु में मौत से हार गये।

टूटते तारे को सब निहारते रहे,
ऐ 'धूमिल' तेरे किरदार को सब हारते रहे।
अफ़सोस अब सबको तुम्हारी रुख़सती का है,
तेरे शब्द को अब प्यार से संवारनें लगे।

सच्चाईयों से रु-ब-रु तुम उस समय भी थे,
सड़क से, संसद को तुम ललकारते रहे।
किस्सा वहीं अक्सर उछलता है समाज में,
जिन्दगी जब मौत से हीं हारने लगे।

तुम अकेले ही नहीं किरदार थे 'धूमिल' यहाँ,
जो रोटियों को भूख से पुकारते रहे।
पालती है भीड़ जिस किरदार को शासक बना,
शासक वहीं उन पर दुलत्ती झाड़ते रहे।

ऐ 'विनम्र' वक़्त के भी पाँव होते हैं,
अंगद के ऐसे पाँव को क्यों टारने लगे।
देखो फ़िज़ाओं में यहाँ ख़ामोशियाँ बस हैं,
मुर्दों की बस्तियों में किसे पुकारने लगे।

विनय "विनम्र" - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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