संदेश
कोशिश - लेख - सुधीर श्रीवास्तव
कहावत भी है कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।बस, जीत का फ़ासला बताता रहता है कि कोशिश सिर्फ़ कोशिश है या जीतने की ज़िद। यदि हम पूरी ई…
मानव - कविता - डॉ. अवधेश कुमार अवध
माना जीवन कठिन और राहें पथरीली। पाँव जकड़ लेती है अक्सर मिट्टी गीली।। मुश्किल होते हैं रोटी के सरस निवाले। पटे पुराने गज दो गज के शाल-द…
प्रेम की दास्ताँ - गीत - प्रशान्त "अरहत"
कहाँ तुम हो अभी, कहाँ हम हैं अभी, ज़िन्दगी की डगर ये किधर जाएगी? अनकही जो रही प्रेम की दास्ताँ मेरे गीतों में ही वो मुखर जाएगी। वो किता…
श्याम की पाती - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
पढ़ के सुना दे ले सखी, मेरे श्याम की पाती, ऐसी रमी प्यार में कि श्याम श्याम के सिवा, और न कुछ कह सुन पाती। याद किया कितना, हमको बतला द…
जगा लो - कविता - विनय विश्वा
जागो जागो ऐ दुनिया वालों, अपने मानुष को जगा लो। ऊँच-नीच का भेद तुम छोड़ो, अर्थ के पीछे तुम ना होलो। भागम-भाग भरी दुनिया में, कुछ बोलों…
इश्क़ करना नहीं - कविता - धीरेन्द्र पांचाल
इश्क़ पर तुम किताबें लिखे जा रहे हो। मशवरा है मेरा इश्क़ करना नहीं। दर्द काग़ज़ पे अपने लिखे जा रहे हो। मशवरा है मेरा दर्द कहना नहीं। मुस्…
स्फूर्ति वदन पी चाय मुदित - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
स्फूर्ति वदन पी चाय मुदित मन, मुस्कान अधर नित खिलती हैं। श्रान्त अथक मन क्लान्त श्रमिक, चाय चाह नित मन खिलती हैं। रिश्तों का प्रतिबिम्…
जय जवान, जय किसान बोलो - कविता - मोहम्मद मुमताज़ हसन
जय-जय अपना हिंदुस्तान बोलो! एक रहेंगे, हिंदू न मुसलमान बोलो! मिटा देंगे जातपात, मज़हब के झगड़े, बना कर सब को फिर इंसान बोलो! सींचा वतन क…
सुनो लड़कियों - कविता - अर्चना सिंह बोद्ध
तुम्हें बनना है सावित्री जो खेलने की उम्र में निकल पड़ी थीम तुम्हारे लिये स्कूलों के ताले खोलने, जिन्हें जड़ा था धर्म के ठेकेदारों ने। व…
निंदा - कविता - रमाकांत सोनी
निंदा निंदनीय पाप कर्म, आलोचना बेहद ज़रूरी। प्रगति पथ के पथिक की, उन्नति की सदा है धूरी। केकई कान की कच्ची रही, जो राम को वनवास मिला…
मन के भाव - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
मन जैसा नहीं है कोई पल भर में जो बदले, मन भावों का सागर है सागर में जन डोले, थोड़ा मनमौजी है मन थोड़ा स्वार्थ भाव तन घोले, मन जिनका …
वतन - ग़ज़ल - ज़ीशान इटावी
सियासत में जो आए हो तो इतना काम कर देना, तुम अपनी ज़िन्दगी अपने वतन के नाम कर देना। जुदा भाई को भाई से करे नफ़रत जो फैलाए, तुम ऐसी सा…
पुरुष होना कहाँ आसान है - कविता - चीनू गिरि
कहना जितना आसान तुम पुरुष हो, मगर पुरुष होना कहाँ आसान है! पुरुष के सिर पर है ज़िम्मेदारी सारी, पत्नी मेरा हक़ है तुम पर, माँ कहती मेरे …
तुमसे मिलने के बाद - कविता - अमित अग्रवाल
अकेले सफ़र को हमसफ़र मिल गया, हक़ीक़त को जैसे जादू सा कोई कर गया, ना कुछ ख़्वाहिश अब, ना कोई है फ़रियाद, सब कुछ बदल सा गया है तुमसे मिलने के…
एहसान - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
कोरोना को रोकने, वैक्सीन बन के आ गई। संजीवनी सी समूचे, समुदाय मन ये छा गई।। जानें हज़ारों ले चुका जो, रोज़गार लाखों खा चुका जो। शिक…
प्रिये कहूँ या वल्लभे - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
प्रिये कहूँ या वल्लभे, कविता निशि शृङ्गार। नैन नशीली घातकी, बिम्बाधर अभिसार।।१।। नज़र चुरायी आपने, था स्नेहिल अहसास। दन्तपाँति मुख…
हो गई मग़रूर सुन - ग़ज़ल - मनजीत भोला
हो गई मग़रूर सुन कोठी पे आना है सुबह, हम बताएँगे हवा किस ओर जाना है सुबह। मुतरिबा से बोल दो तैयार सारे साज़ हों, सोज़ कितना है हमें सबको …
समय प्रबंधन - लेख - सुनील माहेश्वरी
मैं बहुत व्यस्त हूँ, या मेरे पास समय नहीं है, क्या ये वाक्य हमारे जीवन में बाधक है? यह एक बहुत ही दिलचस्प सवाल और समस्या है, क्योंकि आ…
द्वेष न रखना - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
रुकमण तुम द्वेष न रखना ओ रुकमण रानी, राधा के दिल मे, उलझें तेरे श्याम के प्रानी। जीवन रूपी पौधा श्याम का, विकसित होगा तब, जब बन जायो त…
मोहब्बत के दीप - कविता - विजय गोदारा गांधी
सबकी चाह झूठ के पकवान सच की रोटी खाता कौन है... लाख दुआएँ बेअसर रह जाती है किसी के बुलाएँ आता कौन है... रस्तों पर पड़े रहते हैं टुकड़े द…
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