स्फूर्ति वदन पी चाय मुदित - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

स्फूर्ति वदन पी चाय मुदित मन,
मुस्कान अधर नित खिलती हैं।
श्रान्त अथक मन क्लान्त श्रमिक,
चाय चाह नित मन खिलती हैं।

रिश्तों का प्रतिबिम्ब नींब यह,
चाय की चुस्कियाँ लेते हैं।
नयी ताज़गी लाती जन मन,
सम्बन्ध मधुर बन जाते हैं।

सम्मान अतिथि प्रतिमान चाय,
सुस्वादु मधुर चाय भाती हैं।
सादी निम्बू आयुर्वेदिक,
बहुरंग चाय बन जाती हैं।  

है ख्याति लब्ध सम्पूर्ण जगत,
उत्पाद विश्व भर होते हैं।
बहुमूल्यक पेय पदार्थ आज,
अनमोल सुयश फलदायक है। 

व्यापार चाय अब आय वतन,
भारत कोष स्रोत बनती हैं।
अभ्यागत अभिनन्दन स्वागत,
दीन धनी चाहत रहती हैं।

नींद खुली ले रस पान चाय,
पी कड़क चाय जोश लाती हैं।
अनिवार्य आज जीवन चर्या,
चाय पान जन मन भाती है। 

बिन चाय आज समरसता कहँ,
अस्तित्व चाय बन जाती है।
व्यक्तित्व आज सामाजिक बन,
बस चाय समादर बनती है।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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