एहसान - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"

कोरोना को रोकने,
वैक्सीन बन के आ गई।
संजीवनी सी समूचे,
समुदाय मन ये छा गई।। 

जानें हज़ारों ले चुका जो,  
रोज़गार लाखों खा चुका जो।  
शिक्षा को चौपट कर चुका जो, 
उसे खाने वैक्सीन ये अब आ गई।। 

पंजीकरण नित हो रहे हैं, 
टीके बराबर लग रहे हैं। 
भगे नहिं गर कोरोना-क्रूर भय से,
वैक्सीन भय से जाने क्यों कइ भग रहे हैं।। 

वैक्सीन है गर लग गयी, 
कोरोना न फिर उसके छुएगा। 
जीवन सुरक्षित हो गया,
कोरोना से न कोई फिर मुयेगा।।। 

धन्य हो विज्ञान, 
तुझको नमन मेरा, 
देर से ही भले, 
कोरोना को तो घेरा।। 

दवा तूने रची, 
औ डॉक्टर रचा।
पर न वह भी 
कोरोना से कोरा बचा।।

करोड़ों की जान पर 
मंडराता ख़तरा टल गया अब। 
इस अदृश्य अरि विषाणु पर, 
ये वार तेरा फल गया अब।।

एहसान ऐ विज्ञान! 
ये मुझ पर तेरा।
नहिं भूलूँगा, लौटाऊँगा, 
चल पायेगा गर बस मेरा।।

राम प्रसाद आर्य "रमेश" - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)

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