श्याम की पाती - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

पढ़ के सुना दे
ले सखी,
मेरे श्याम की पाती,
ऐसी रमी प्यार में 
कि श्याम श्याम के सिवा,
और न कुछ कह
सुन पाती।
याद किया कितना,
हमको बतला दे
साफ समझा दे,
जिया धीर
न धरे।
कितनी डूबी
प्यार में उनके
कैसे बताऊँँ सखी
वो भले याद करें न करें।
में तो रंग गई
कान्हा में,
अब कोई रंग
चढे न चढे।
मिलन डगर की,
राह देखते
मेरे नयना
वो मेरी वाट
तके ना थके ना।
तू मन ही मन
पढ़ के पाती
तुम तो हँस दी
कसक रहा मेरा
दिल, मेरी छाती।
पढ़ के सुना दे सखी ले सखी मेरे श्याम की पाती।
देख के राधा को व्याकुल,
सखी करके ठिठोली यों बोली,
लिखा तुमको खुशियों में।
साया में रहना ओ मेरी हमजोली।
साथ न छूटे जब तक
धरती पर तू और मैं,
सूरज चाँद रहेगा तब तक
हर पल याद करुँ,
नयनों के झरना रीत गये,
काया बनी अथक।
लिख कर खत देना दिलासा
हम रहें भी सजनी कैसे
याद न तेरी हिय से जाती
जब आए मेरे श्याम कि पाती।
पढ के सुना दे
ले सखी मेरे
श्याम की पाती।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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