चीनू गिरि - देहरादून (उत्तराखंड)
पुरुष होना कहाँ आसान है - कविता - चीनू गिरि
शनिवार, फ़रवरी 06, 2021
कहना जितना आसान तुम पुरुष हो,
मगर पुरुष होना कहाँ आसान है!
पुरुष के सिर पर है ज़िम्मेदारी सारी,
पत्नी मेरा हक़ है तुम पर,
माँ कहती मेरे दुध का क़र्ज़ है तुम पर!
बच्चे रोज़ नई नई फ़रमाइश करते हैं!
पत्नी, बच्चों, माँ को खुश करने में गुज़री ज़िंदगी सारी!!
कहना जितना आसान तुम पुरुष हो,
मगर पुरुष होना कहाँ आसान हैं!
हम औरते बात बात मे रो देती हैं,
कहती है तुम क्या जानो दर्द क्या होते है!
पुरुष भी प्रेम का सागर है कठोर नही होते!
बस अपनी भावनाओं को हर किसी के आगे व्यक्त नहीं करते!!
कहना जितना आसान तुम पुरुष हो,
मगर पुरुष होना कहाँ आसान है!
नारी तुम्हारे चहरे पर जो मेकअप है,
ये तुम्हारी पति की दिन भर की मेहनत हैं!
घर के चूल्हे जलाने से लेकर बच्चों की कॉपी किताब,
माता पिता की दवा तक सिर्फ़ पुरुष के सिर पर भार है!!
कहना जितना आसान तुम पुरुष हो,
मगर पुरुष होना कहाँ आसान है!
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