डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली
प्रिये कहूँ या वल्लभे - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2021
प्रिये कहूँ या वल्लभे, कविता निशि शृङ्गार।
नैन नशीली घातकी, बिम्बाधर अभिसार।।१।।
नज़र चुरायी आपने, था स्नेहिल अहसास।
दन्तपाँति मुखनभ सजे, हो तारक आभास।।२।।
चपल चारु तव भंगिमा, अभिसारक अंदाज।
फँसा प्रेम के पाश में, दिल पे करती राज।।३।।
करके तूने दिल्लगी, दिली न करती बात।
फिरी बनी तुम बावली, तरसाती दिन रात।।४।।
मन्द मन्द मुस्कान है, मचकाती पदचाल।
आँख मिचौनी बस करो, मैं प्रेमी बेहाल।।५।।
तुम मेरी हो चन्द्रिका, मैं हूँ तेरा चंद।
रजनीगंधा तुम सखी, मैं भौंरा मकरंद।।६।।
तुम मकसद दिल आरजू, तू जीवन संदेश।
नशा बनी तू जिंदगी, मैं साजन परदेश।।७।।
मैं हूँ तेरा आशिकी, तुम मेरी है ज़ान।
आओ हमजोली बने, प्यार चढ़े परवान।।८।।
ख़्वाबों की तू मल्लिका, नखरा तव श्रृंगार।
घायल करती नैन हैं, बातों में तकरार।।९।।
तुम मेरी हो आबरू, जीवन का आधार।
प्रेम सरित मैं बह चला, तुम जीवन पतवार।।१०।।
कवि निकुंज प्रेमी हृदय, करूँ स्नेह उद्गार।
जीवनसाथी तुम प्रिये, नवरस मम संसार।।११।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर