जगा लो - कविता - विनय विश्वा

जागो जागो ऐ दुनिया वालों,
अपने मानुष को जगा लो।
ऊँच-नीच का भेद तुम छोड़ो,
अर्थ के पीछे तुम ना होलो।
भागम-भाग भरी दुनिया में,
कुछ बोलों मीठी बातें घोलों।
जागो जागो ऐ दुनिया वालों,
अपने को जगा लो।
भ्रमजाल का फँदा खोलो,
अपने विवेक जगा लो।
क्या है बुरा क्या है भला,
अपनी दृष्टि खोलों।
जागो जागो दुनिया वालों,
अपने को जगा लो।

विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)

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