संदेश
सौंदर्य - गीत - सतीश मापतपुरी
तुम खुले केश छत पे ना आया करो , शब के धोखे में चँदा उतर आएगा । बेसबब दाँत से होंठ काटो नहीं , क्या पता कौन बेवक़्त मर जाएगा । होंठ…
बदलता दौर - कविता - कर्मवीर सिरोवा
सो गया हूँ मोबाईल में वेब सीरीज देखकर, जगा दे सुब्ह, वो मंज़िल की पुकार कहाँ है। वर्तमान तो पढ़ रहा हैं स्माईल-ओ-यूट्यूब से, पर स्कूल मे…
पीड़ा - कविता - अवनीत कौर
अंतर्मन से निकली आह यह पीड़ा है उदास मन की बेइंतहा झूठा शोर बेमानी ख़ामोशी इस पीड़ा की किसे है परवाह। जब रूद्र शब्द मन में करे क…
मज़दूर है मजबूर - कविता - गणपत लाल उदय
मैं हूँ एक ग़रीब मज़दूर हालत ने कर दिया मजबूर। गाँव छोड़ शहर में आया पेट परिवार का भर नहीं पाया।। दिन भर में इतना ही कमाता शाम को ख…
उदारता है प्रेम का परिष्कृत रूप - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
उदार व्यक्ति दूसरों के प्रति उदार भाव रखता है और समाज में सेवा भाव से रहता है। सच्ची उदारता इस बात में है कि मनुष्य को मनुष्य समझा जाए…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १९) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१९) शोषण अत्याचार, गरीबी से अभिशापित। बेगारी बेकार, प्रताड़ित औ विस्थापित। कुरीतियों से ग्रस्त, आदिवासी नर-नारी। अब भी रहते त्रस्त…
सीता हरण - कविता - रमाकांत सोनी
पंचवटी में जा राघव ने नंदन कुटी बना डाली, ऋषि मुनि साधु-संतों की होने लगी थी रखवाली, शूर्पणखा रावण की बहना वन विहार करने आई, राम लख…
कसौटियार: बहुआयामी व्यक्तित्व - संस्मरण - पारो शैवलिनी
चितरंजन के हिन्दी नाटक जगत में एक बहुआयामी व्यक्तित्व के रूप में स्वयं को स्थापित करने में सफल रहे व्यक्ति के रुप में मैं जिस कलाकार स…
ग़रीबी - कविता - मधुस्मिता सेनापति
ग़रीबी में पैदा हुए, क्या ग़रीबी में ही मर मिटेंगे। कितने ख्वाब लेकर आए थे हम इस जहान में, क्या इस अधूरेपन में ही दम हम तोड़ेंगे...!! जह…
शिव स्तुति - कविता - तेज देवांगन
तू आश है, विश्वास है, तू हर मानव तलाश है। तू क्षण है, भंगुर है, तू मानव शक्ति आतुर है। तू ज्ञान है, विज्ञान है, तू सत्यता की प्रमाण है…
मुहब्बत - ग़ज़ल - ज़ीशान इटावी
तुझे ये दोस्त अपना फिर पुराना याद आएगा, तुझे फिर ये मुहब्बत का ज़माना याद आएगा। तू जितनी कोशिशें करले भुलाने की मुझे लेकिन तुझे तेरा य…
हौसला है कायम - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
गर खुद में है हौसला, तू तोड़ पत्थर राह अकेला। मंजिलों में दुश्वारियां हैं राही तू चल अकेला। मुश्किलें जो राह मे तोड़ देती हौसला, हिम्…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १८) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१८) मिली नहीं जमीन! योजना रही विवादित। आशा हुई मलीन, हुई रैयतें प्रभावित। मिशनरियों पर आस, लगाई फिर से रैयत। असफल रहा प्रयास, लाख…
किसान - कविता - नूर फातिमा खातून "नूरी"
दिन रात मेहनत करता है किसान हर हाल में डटा रहता है किसान। तपती धूप में खेत की खुदाई करें, शीतलहर में फ़सल की सिंचाई करें, तैयार फ़सल…
क़ातिलों की बस्ती में बेबस दिल - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
सुर्ख़ हाथों से तेरा नाम लिखता हूं, रस्मे-उल्फ़त का पैग़ाम लिखता हूं! वो लिखती है तन्हा रात का मंज़र, मैं सुरमई सी कोई शाम लिखता हूं! जो क…
जिम्मेदारी - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
ये देश हमारा है बस इसी गुमान में मत रहिए देश से प्यार भी कीजिए, आपकी भी कुछ जिम्मेदारियां भी हैं उसका भी निर्वाह कीजिए। देश और देश के …
जलाओ दिये - कविता - राम प्रसाद आर्य
जलाओ दिये, पर रहे ध्यान इतना, रह गया है दिये में कि अब तेल कितना। कि बाती बुझी है या जली है तो कितना, बदलनी है बाती, डालना तेल कित…
ज़रूरत - कविता - सन्तोष ताकर "खाखी"
यूँ बात से बाते बढ़ाने की ज़रूरत क्या थी, लगता नहीं था दिल गर, तो दिल जलाने की ज़रूरत क्या थी। आग में घी डालना आदत थी मेरी, गर समझ…
बेटी - कविता - संजय राजभर "समित"
माँ!! यश, अपयश कैसा? मेरी प्राण बचा मुझे पार लगा तेरी बगिया की फूल नही मज़बूत हथियार बनूँगी। तात उदास मत बैठो मुझे ताकत दो, दह…
बेबस जनता - कविता - श्रवण निर्वाण
सिहांसन की लड़ाई यूँ ही सदियों से चलती रही जनता सदा पिसती गई, ऐसे ही "नारे" रटती रही। कुनबे बंटे, कुछ के गात कटे फिर भी रुके …
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