उदारता है प्रेम का परिष्कृत रूप - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

उदार व्यक्ति दूसरों के प्रति उदार भाव रखता है और समाज में सेवा भाव से रहता है।
सच्ची उदारता इस बात में है कि मनुष्य को मनुष्य समझा जाए, क्योंकि एहसान जताकर उपकार करना अनुपकार है।


मेरी एक रचना  इसी विषय में है:
"बन प्रसून खुशबू बिखरा दो,
मधुबन जैसी उदारता।
तालमेल काटों सँग सीखो,
पुष्प हृदय सी विशालता।"


बहुत से लोग परिस्थितियों की प्रतिकूलता का बहाना करके दूसरों की सेवा और सहायता के कामों से बचना चाहते हैं जो कि सर्वथाअनुचित ही है।
मनुष्य जीवन को सफल और उन्नत बनाने वाले अनेकों गुण होते हैं जैसे सच्चाई, न्याय प्रियता धैर्य, साहस, दया, क्षमा, परोपकार आदि। इनमें से कुछ तो ऐसे गुण होते हैं जिससे वह व्यक्ति स्वयं ही लाभ उठाता है, और कुछ ऐसे गुण भी होते हैं जिनके द्वारा परोपकार भी होता है और अपनी आत्मोन्नति भी होती रहती है। उदारता भी एक ऐसा  ही महान गुण है।


मनुष्य के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने वाली यदि कोई वस्तु है तो वह उदारता है, उदारता प्रेम का परिष्कृत रूप है।
प्रेम में कभी कभी स्वार्थ भावना भी छिपी रहती है।
उदार मनुष्य दूसरों से प्रेम अपने स्वार्थ साधन हेतु नहीं करता बल्कि उनके कल्याण और अपने स्वभाव के कारण करता है।
इससे उदारता युक्त प्रेम सेवा का रूप कर लेता है, इस प्रकार का उदार प्रेम दैवीरूप से प्रकाशित होता है।
उदार व्यक्ति दूसरों के दुख से भी दुखी हो जाता है।
भगवान बुध अपने दुख से जंगल में नहीं गए वरन संसार के सभी प्राणियों के दुखों को देख, मुक्ति दिलाने के विचार से राजमहल त्याग कर बनवासी बने थे। ऐसे ही व्यक्ति नरश्रेष्ठ कहे जाते हैं।


उदारता से मनुष्य की मानसिक शक्तियों का अद्भुत विकास होता है।
सच्चे उदार व्यक्ति अपनी उदारता का कभी अफसोस नहीं करते।
सेवा भाव से किया गया कोई भी कार्य व्यर्थ नहीं जाता एवं मानसिक दृढ़ता प्रदान करता है यही प्रकृति का नियम है।
अतः विचारों में उदारता परमावश्यक है।


सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)


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