मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १९) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(१९)
शोषण अत्याचार, गरीबी से अभिशापित।
बेगारी बेकार, प्रताड़ित औ विस्थापित।
कुरीतियों से ग्रस्त, आदिवासी नर-नारी।
अब भी रहते त्रस्त, शोषकों से अतिकारी।।


फौरन कुड़ुख समाज, मचाई भू पे हलचल।
जतरा की आवाज़, उभरकर आई जिस पल।
गाँधीवादी भगत, यथा बन कर उद्दीपक।
होके सक्रिय सतत, जलाए मग में दीपक।।


सब हों एक समान, भगत दल सस्वर बोले।
देश-प्रेम के गान, फिजाओं में थे घोले।
कर का किस्सा खत्म, किए भावों में बहकर।
देख रहे थे स्वप्न, स्वशासन का रह-रह कर।।


अंग्रेज हुए नाराज़, जेल जतरा को भेजे।
टानाओं पर गाज, गिराकर तंत्र सहेजे।
स्थानीय जमींदार, शत्रुता खूब निभाई।
इक-इक कर क्रमवार, जमीनें जब्त कराई।।


कर दी भू नीलाम, सरासर टानाओं की।
घिर आई थी शाम, भगत के सेनाओं की।
टाना दल जयकार, हमें करना सिखलाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।


डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)


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